*
नहीं ,आँसू नहीं ,
आग है !
धधक उठा अंतस्
रह-रह उठती लपटें ,
कराल क्रोध-जिह्वाएँ
रक्तबीज-कुल का नाश,
यही है संकल्प .
बस !
शान्ति नहीं ,
चिर-शान्त करना है
सारा भस्मासुरी राग.
यह रोग ,
रोज़-रोज़ का
चढ़ता बुख़ार ,यह विकार ,
मिटाना है जड़-मूल से .
नहीं मिलेगी शान्ति, कहीं नहीं ,
जब तक एक भी कीटाणु
शेष है .
सावधान ,
ओ, मेरे बंधु-बाँधवों,
निरंतर सावधान -
कोई अवसर न देना इन्हें पनपने का.
ये परजीवी कीट ,
चौगुने से चौगुने प्रजनन में लीन ,
धरती के कलंक
कुचैल,कुटिल कुअंक,
नरक के जीव.
जब तक रहेंगे, जहाँ रहेंगे
छिप-छिप चलाएँगे ज़हरीले डंक .
बहुत हुआ
बस करो ,
कीट-नाशक
ज़रूरी है
रोगाणुओं के लिए,
कि एक भी
कहीं भी दबा छिपा
बचे नहीं ,
तभी त्राण पाएगी मनुजता
गगन -पवन- सलिल ,निर्मल
दिशायें प्रकाशित
और धरा मुक्ति की साँस लेगी.
नहीं ,आँसू नहीं ,
आग है !
धधक उठा अंतस्
रह-रह उठती लपटें ,
कराल क्रोध-जिह्वाएँ
रक्तबीज-कुल का नाश,
यही है संकल्प .
बस !
शान्ति नहीं ,
चिर-शान्त करना है
सारा भस्मासुरी राग.
यह रोग ,
रोज़-रोज़ का
चढ़ता बुख़ार ,यह विकार ,
मिटाना है जड़-मूल से .
नहीं मिलेगी शान्ति, कहीं नहीं ,
जब तक एक भी कीटाणु
शेष है .
सावधान ,
ओ, मेरे बंधु-बाँधवों,
निरंतर सावधान -
कोई अवसर न देना इन्हें पनपने का.
ये परजीवी कीट ,
चौगुने से चौगुने प्रजनन में लीन ,
धरती के कलंक
कुचैल,कुटिल कुअंक,
नरक के जीव.
जब तक रहेंगे, जहाँ रहेंगे
छिप-छिप चलाएँगे ज़हरीले डंक .
बहुत हुआ
बस करो ,
कीट-नाशक
ज़रूरी है
रोगाणुओं के लिए,
कि एक भी
कहीं भी दबा छिपा
बचे नहीं ,
तभी त्राण पाएगी मनुजता
गगन -पवन- सलिल ,निर्मल
दिशायें प्रकाशित
और धरा मुक्ति की साँस लेगी.
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-02-2019) को "श्रद्धांजलि से आगे भी कुछ है करने के लिए" (चर्चा अंक-3250) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अमर शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमन वीरों को।
जवाब देंहटाएंनमन वीर शहीदों को |
जवाब देंहटाएंसादर
पुलवामा के शहीदों को नमन
जवाब देंहटाएं