*
तुम बार-बार क्यों लौट रही हो सर्दी ,
कोहरा तो भाग गया , दे अपनी अर्जी.
*
गद्दे रजाइयाँ सभी खा चुके धूपें ,
बक्से में जाने से बस थोड़ा चूके
हमने भी अपनी जाकेट धो कर धर दी,
तुमने यों आकर कैसी मुश्किल कर दी.
*
ये तीन महीने बीते सी-सी करते,
अब जाकर तन के बोझ हुए थे हलके,
सुबहों में जल्दी लगा जागने सूरज,
नदियाँ प्रसन्न हो गईं हटा कर चादर.
फैलाओ अब मत अपनी दहशतगर्दी.
*
शिवरात्रि आ रही पीने दो ठंडाई,
घोटेंगे भाँग सिलों पर लोग-लुगाई .
तुम नाक बहाती, खाँसी-खुर्रा लेकर ,
क्यों घूम रही हो यहाँ लगाती चक्कर,
आराम करो, मत लादो अपनी मर्ज़ी.
*
दिन बड़ा हो गया आने को है होली ,
मौसम में जैसे घुली भाँग की गोली.
त्योहारों को ऐसे मत धता बताओ,
बुढ़िया माई,कंबल ओढ़ो सो जाओ,
मौसम भी बदल चुका है अपनी वर्दी!
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तुम बार-बार क्यों लौट रही हो सर्दी ,
कोहरा तो भाग गया , दे अपनी अर्जी.
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गद्दे रजाइयाँ सभी खा चुके धूपें ,
बक्से में जाने से बस थोड़ा चूके
हमने भी अपनी जाकेट धो कर धर दी,
तुमने यों आकर कैसी मुश्किल कर दी.
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ये तीन महीने बीते सी-सी करते,
अब जाकर तन के बोझ हुए थे हलके,
सुबहों में जल्दी लगा जागने सूरज,
नदियाँ प्रसन्न हो गईं हटा कर चादर.
फैलाओ अब मत अपनी दहशतगर्दी.
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शिवरात्रि आ रही पीने दो ठंडाई,
घोटेंगे भाँग सिलों पर लोग-लुगाई .
तुम नाक बहाती, खाँसी-खुर्रा लेकर ,
क्यों घूम रही हो यहाँ लगाती चक्कर,
आराम करो, मत लादो अपनी मर्ज़ी.
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दिन बड़ा हो गया आने को है होली ,
मौसम में जैसे घुली भाँग की गोली.
त्योहारों को ऐसे मत धता बताओ,
बुढ़िया माई,कंबल ओढ़ो सो जाओ,
मौसम भी बदल चुका है अपनी वर्दी!
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