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एक जीवन्त रचना -
नव - नीड़ ,
चिड़ी-चिड़ा - सहचरी-सहचर .
अथक श्रम
रात-दिन,दिन-रात
दौड़ते-भागते श्रम के पहर !
काल - बिरछ की टहनी पर
जमा लिया चुन-चुन, तिन-तिन
आस- विश्वास की डोरियों से बाँधं,
नेह-मोह लिपटे आस के रेशों से
एक संसार !
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बरसा-बूँदी के घात,
हवाओं की बिखेर झेलते
सेते रहे हिरण्यगर्भी कल्पनायें ,
कि नीड़ से आगे खुले आकाश में
उड़ेंगे ये हमारे संस्करण !
पुरी आस ,सफल प्रयास,
खुली दिशायें ,
नये आकाश ,नयी बातास !
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ऋतुयें आयें-जायेंगी ,
पुराने पात जगह देंगे कि
नई बहार खिलती रहे !
नये अवतरण,
होते रहेंगे बारंबार
वही नेह जतन !
लघु-लघु अँकनों में ,
एक ही कथा के
आगे के प्रकरणों जैसे .
अध्याय पर अध्याय ,
पंक्ति-बद्ध ,
अनवरत-अविरल ,अनुक्रम !
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बिखेर तिनके पुराने
काल - क्रम में चक्कर काटते
उड़ जाएंगे चिड़ा-चिड़ी ,
जीवन की चिर-नव्यता
का पाठ फिर-फिर दोहराने !
सृष्टि की महागाथा के
अक्षरित सम में .
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