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जीवन भर रिश्ते ही तो जिये हैं !
इसी गोरखधंधे में घूमते ,
किससे ,कैसे ,कहाँ ,क्यों ,
सोचते- समझते ,
भूल गई
निकलने का रास्ता किधर है .
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उत्सुकता भर कभी
झाँक लिया बाहर -
कहीं-कहीं वाली खिड़कियों से .
रहने-बसने को यही कुठरियाँ -
कुछ इधर ,कुछ उधर !
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स्त्री है ,
उच्छृंखल न हो जाए .
धरे रहो जुआ संबंधों का !
निभाती रहे
तरह-तरह के रिश्तोंवाली ड्यूटी.
रहेगी व्यस्त-लस्त ,
और कुछ सोचे बिना
बिता देगी जीवन.
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'तुम हो माता ,तुम बहन'
ज़ोरदार गुन-गौरव गान,
प्रशंसा का अवदान ,
बस ,अनुकूल रहे तक !
अन्यथा गा दो
अपना 'तिरिया-चरित्तर पुराण' !
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स्त्री - एक साधन !
जरूरतें तुम्हारी ,तुम्हारा मन
निभायेगी हर तरह
जाएगी कहाँ,
है कहीं ठौर रहने को ?
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सावधान !
छूट मत दो इतनी कि
अपने लिए जीने का ,
मुक्त धारा सी
अबाध बहने का ,
शौक पाल ले;
व्यक्ति के रूप में कहीं
स्वयं को न पहचान ले !
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