(एक बहुत पुरानी कविता कागज़ों में दबी पड़ी रही , अब मिल गई तो उसी रूप में यहाँ उतारे दे रही हूँ -)
*
सहयात्री -
रस्ते के कंकड़-पत्थर ,पग-पग की ठोकर ,
तपता आतप ताप और ये काँटे .
चलना है स्वीकार इन्हें कर .
काँटों का विष-वमन ,धूप की तपन,
राह दुर्गम है !
नीरस जीवन भार
नेह को दो ही बोल सहज कर जाते ,
दो क्षण की मुस्कान सँजो लेते
पथ के ये विषमय काँटे ,
जग की मौन उपेक्षा,उपालंभ, आरोपण ,
तो फिर तोड़ न पाते
ओ सहयात्री, अपने नाते !
*
तेरी-मेरी एक कहानी ,
जहाँ नहीं रुकने का कोई ठौर-ठिकाना ,
उसी जगह से चरण चले थे.
पहला पग जब उठा
राह बोली थी - आगे,आगे देखो.
एक-एक कर कितनी दूरी इसी तरह मप गई.
पथ के साथी ,
साथ छूटता पर पहचान शेष रह जाती ,
मन में उमड़-घुमड़ जाता व्यवहार स्नेह का ,
जीवन के आतप में जो छाया दे लेता .
*
कह लो कुछ, कुछ सुन लो ,
सूनापन बस जाए दो ही क्षण को :
आगे कितनी दूर अकेले ही जाना है
अपने पथ पर तुमको -हमको !
ओ सहयात्री,
तेरी-मेरी एक कहानी.
जग की कसक भरी रेती पर
जहाँ नहीं रह जाती कोई शेष निशानी .
दो क्षण की पहचान भटकते से चरणों की.
काल फेर जाएगा चापों पर फिर पानी !
*
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सहयात्री -
रस्ते के कंकड़-पत्थर ,पग-पग की ठोकर ,
तपता आतप ताप और ये काँटे .
चलना है स्वीकार इन्हें कर .
काँटों का विष-वमन ,धूप की तपन,
राह दुर्गम है !
नीरस जीवन भार
नेह को दो ही बोल सहज कर जाते ,
दो क्षण की मुस्कान सँजो लेते
पथ के ये विषमय काँटे ,
जग की मौन उपेक्षा,उपालंभ, आरोपण ,
तो फिर तोड़ न पाते
ओ सहयात्री, अपने नाते !
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तेरी-मेरी एक कहानी ,
जहाँ नहीं रुकने का कोई ठौर-ठिकाना ,
उसी जगह से चरण चले थे.
पहला पग जब उठा
राह बोली थी - आगे,आगे देखो.
एक-एक कर कितनी दूरी इसी तरह मप गई.
पथ के साथी ,
साथ छूटता पर पहचान शेष रह जाती ,
मन में उमड़-घुमड़ जाता व्यवहार स्नेह का ,
जीवन के आतप में जो छाया दे लेता .
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कह लो कुछ, कुछ सुन लो ,
सूनापन बस जाए दो ही क्षण को :
आगे कितनी दूर अकेले ही जाना है
अपने पथ पर तुमको -हमको !
ओ सहयात्री,
तेरी-मेरी एक कहानी.
जग की कसक भरी रेती पर
जहाँ नहीं रह जाती कोई शेष निशानी .
दो क्षण की पहचान भटकते से चरणों की.
काल फेर जाएगा चापों पर फिर पानी !
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