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प्रिय धरित्री,
इस तुम्हारी गोद का आभार ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके ,
तुमको कृतज्ञ प्रणाम !
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ओ, चारो दिशाओँ ,
द्वार सारे खोल कर रक्खे तुम्हीं ने ,
यात्रा में क्या पता
किस ठौर जा पाएँ ठिकाना.
शीष पर छाये खुले आकाश ,
उजियाला लुटाते ,
धन्यता लो !
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पंचभूतों ,
समतुलित रह,
साध कर धारण किया ,
तुमको नमस्ते !
रात-दिन निशिकर-दिवाकर
विहर-विहर निहारते ,
तेजस्विता ,ऊर्जा मनस् संचारते ,
नत-शीश वंदन !
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हे दिवंगत पूवर्जों ,
हम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति .
पा सके हर बीज में
अमरत्व की संभावना ,
अंतर्निहित निर्-अंत चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !
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- प्रतिभा.