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कल्याणमयी माँ ,भारति हे ,शुभ श्रेय-प्राप्ति वर दो!
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उज्ज्वल तन, धवल ज्ञान-दीपित,दिव्यता-बोधमय दृष्टि प्रखर;
हे सकल कला-विद्या धारिणि, तुमसे ही दिशा-दिशा भास्वर.
हो ताप-क्लेश-दुख शमित, राग-रस से सिंचित कर दो!
शुभ श्रेय-प्राप्ति वर दो!
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ज्योतित स्वरूप उजियारा भर, कर दे विलीन तम का कण-कण;
शतदल मकरन्द अमन्द धरे, धरती-नभ हो आनन्द मयम् .
वाणी,विशुद्ध संधानमयी, वे अमल-सरल स्वर दो !
शुभ श्रेय-प्राप्ति वर दो!
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अवतरो देवि ,जग-जीवन में, कण-कण मुखरित हों गान रुचिर ;
अग-जग झंकृत हो पुण्य-राग, प्राणों में जागे ज्योति प्रखर .
जागें संस्कार सुभग,गति-मति निर्मला, कलुष-हर हो !
शुभ श्रेय-प्राप्ति वर दो!
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