क्या गाती है नदिया, चंचल जल की धारा ,
बही जा रही बजा-बजा कर इकतारा !
*
पर्वत पर अल्हड़ सी ये मीन-नयन धारे ,
मंदिर के कलशों की झिलमिल लहराती रे .
हर पल नव-जल गागर उच्छल हो हो छलके
मुक्ता कण बिखऱ-बिखऱ वन घासों पर ढलके
चलती पल-पल अविरल , रुक नहीं कहीं पाती
आवेग-उमंग भरी ,बल-खाती बढ़ जाती !
कहता गर्वित पर्वत-
ये चंचल जल-बाला मेरी ही तो कन्या.
जीवन रस से सबको जो सींच रही धन्या,
दुर्गम पाहन अड़ते , ऊँची-नीची राहें
सागर को पाने का व्रत पाल रही वन्या ,
उमड़ी आती उर से, मेरी असीस-धारा !
*
मतवाला हो बादल ,
मँडराता सागर पर भरता भूरी छागल .
फिर उमड़, घमंड भरा चढ़ नभ में इतराता .
मल्हार राग गाता, जम जाता पूरा दल !
सावन में भगत बना, आता काँवर लेकर ,
कंकर-कंकर को यो नहलाता ज्यों शंकर!
*
नदिया-पर्वत-बादल,
फिर निर्मल मधु-सा जल
सागर को सौंप लवण,
जीवन का यह अनुक्रम!
बही जा रही बजा-बजा कर इकतारा !
*
पर्वत पर अल्हड़ सी ये मीन-नयन धारे ,
मंदिर के कलशों की झिलमिल लहराती रे .
हर पल नव-जल गागर उच्छल हो हो छलके
मुक्ता कण बिखऱ-बिखऱ वन घासों पर ढलके
चलती पल-पल अविरल , रुक नहीं कहीं पाती
आवेग-उमंग भरी ,बल-खाती बढ़ जाती !
कहता गर्वित पर्वत-
ये चंचल जल-बाला मेरी ही तो कन्या.
जीवन रस से सबको जो सींच रही धन्या,
दुर्गम पाहन अड़ते , ऊँची-नीची राहें
सागर को पाने का व्रत पाल रही वन्या ,
उमड़ी आती उर से, मेरी असीस-धारा !
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मतवाला हो बादल ,
मँडराता सागर पर भरता भूरी छागल .
फिर उमड़, घमंड भरा चढ़ नभ में इतराता .
मल्हार राग गाता, जम जाता पूरा दल !
सावन में भगत बना, आता काँवर लेकर ,
कंकर-कंकर को यो नहलाता ज्यों शंकर!
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नदिया-पर्वत-बादल,
फिर निर्मल मधु-सा जल
सागर को सौंप लवण,
जीवन का यह अनुक्रम!
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