आज की पोस्ट में, अपनी मित्र शार्दुला जी की आस्था के स्वर आप सब तक पहुँचाना चाहती हूँ ,उन्हीं के वक्तव्य के साथ -
(भारत की धऱती से से दूर ,सारे दिन ऑफ़िस में व्यस्त ) ..इतनी सरूफ़ियत के बावजूद ये गीत इसलिए लिखा गया क्योंकि अन्नकूट के दिन सुबह अन्नकूट नहीं बना सकी थी सुबह ,जल्दी से बस जो सबके टिफिन के लिए बनाया था, रायता और केला माधव को चढ़ा के आ गई थी... पसाद चढाते समय आँखों में आँसू आ गए और मन ने कहा गोपाला, जो भी जहाँ भी है सब तेरा है, सब तुझे अर्पित है... अब यही खाओ जब तक लौट नहीं आती घर शाम में...
(भारत की धऱती से से दूर ,सारे दिन ऑफ़िस में व्यस्त ) ..इतनी सरूफ़ियत के बावजूद ये गीत इसलिए लिखा गया क्योंकि अन्नकूट के दिन सुबह अन्नकूट नहीं बना सकी थी सुबह ,जल्दी से बस जो सबके टिफिन के लिए बनाया था, रायता और केला माधव को चढ़ा के आ गई थी... पसाद चढाते समय आँखों में आँसू आ गए और मन ने कहा गोपाला, जो भी जहाँ भी है सब तेरा है, सब तुझे अर्पित है... अब यही खाओ जब तक लौट नहीं आती घर शाम में...
रात को फ़िर अन्कूट बनाते बनाते नौ बज गए थे..
बस गोवर्धन पूजा के दिन दफ़्तर जाते समय मेट्रो ट्रेन में ये कविता बन गई थी ..." जो जैसा है वैसा अर्पण".
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माधव तेरे श्री चरणों में
माधव तेरे श्री चरणों में जो जैसा है, वैसा अर्पित
आर्द्र अरुण अड़हुल का आंचल, नाद शंख सागर में गुंजित
आर्द्र अरुण अड़हुल का आंचल, नाद शंख सागर में गुंजित
गंध, हवाएं, ऋतु की डलिया, फल-फूलों से भरी-भरी सी
सबमें है तू, तुझमें हैं सब, तू ही याचक, तू ही वन्दित
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उन्नत शिखर, घुमंतू बादल, रज नटखट शीशे चमकाती
उषा सुन्दरी, निशा सहचरी, संध्या वंदन, लीन प्रभाती
गोचर स्पर्श, खिलौने तेरे, बिखराए तूने गोपाला
तेरे अर्पण को वनदेवी, मोर-पंख पे मणि रख जाती
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भाव-रुंधे स्वर, प्रीत-जुड़े कर, शुचि, संपन्न, शुभ्र सब तेरे
तिमिर हृदय के, तुमुल विलय के, पातक-हरण ग्रहण कर मेरे
जीवन-धारा, कूल-किनारा, यश-अपयश, सुख-दुःख की लहरें
देय-अदेय, बिंधे छन्दों की बाँसुरिया वनमाली ले रे!
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सादर ,
शार्दुला.
शार्दुला.
(गोवर्धनपूजा, २७ अक्टूबर २०११).
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मेरी बधाई स्वीकार करो ,प्रिय शार्दुला!