फड़ बिछी है ,
चल रहा है दौर ,
तुम खेलो, युधिष्ठिर !
*
खेल के पाँसे किसी के हाथ
साध कर के फेंकता हर बार ,
और तुम भी एक हो ,
जिसको यहाँ चुन कर बिठाया ,
चाल चलने को किया तैयार .
कौन बोलेगा तुम्हारे सामने ,
सिर झुका बैठे हुए चुपचाप सारे बंधु
तुम पर कौन सा प्रतिबंध !
तुम खेलो .युधिष्ठिर !
*
हो रहे उपकृत हिलाते शीष ,
मोह में आविष्ट हो धृतराष्ट्र .
बहुत अपनापन बहुत अधिकार
पा रहा आया हुआ मेहमान .
आज हो कर मान्य सर्वप्रधान
सभी पाँसे हाथ में रख ,
खिलाता जो खेल ,
तुम खेलो, युठिष्ठिर !
*
दाँव रख अपने सभी संबंध,
फिर लगा दो बोल !
खोट तुममें कहाँ ,
तुम गंभीर ,और ,सुधीर .
मौन रहना हो गया वरदान !
सभी कुछ आसान ,
मत बोलो युधिष्ठिर .
शान्ति से बैठे रहो ,
खेलो, युधिष्ठिर !
*
बाँट में जो मिली अपने आप ,
कौन सा तुम
जीत लाये थे दिखा पुरुषार्थ .
चीज सबकी ,तुम्हें क्या संताप ,
रहे या जाये किसी के पास !
जो सुझाये वह, लगा दो दाँव,
तुम खेलो ,युधिष्ठिर !
*
यही है अभिसंधि का प्रारूप,
भाग पाओ यह नहीं वह द्यूत .
तुम निभाओ रीति-नीति आचार
घिर गये हो ,
तुम स्वयं लाचार !
फेंकता पाँसे किसी का हाथ ,
स्वीकारो युधिष्ठिर !
फड़ बिछी है ,
चल रहा है दौर ,
तुम खेलो, युधिष्ठिर !
*
चल रहा है दौर ,
तुम खेलो, युधिष्ठिर !
*
खेल के पाँसे किसी के हाथ
साध कर के फेंकता हर बार ,
और तुम भी एक हो ,
जिसको यहाँ चुन कर बिठाया ,
चाल चलने को किया तैयार .
कौन बोलेगा तुम्हारे सामने ,
सिर झुका बैठे हुए चुपचाप सारे बंधु
तुम पर कौन सा प्रतिबंध !
तुम खेलो .युधिष्ठिर !
*
हो रहे उपकृत हिलाते शीष ,
मोह में आविष्ट हो धृतराष्ट्र .
बहुत अपनापन बहुत अधिकार
पा रहा आया हुआ मेहमान .
आज हो कर मान्य सर्वप्रधान
सभी पाँसे हाथ में रख ,
खिलाता जो खेल ,
तुम खेलो, युठिष्ठिर !
*
दाँव रख अपने सभी संबंध,
फिर लगा दो बोल !
खोट तुममें कहाँ ,
तुम गंभीर ,और ,सुधीर .
मौन रहना हो गया वरदान !
सभी कुछ आसान ,
मत बोलो युधिष्ठिर .
शान्ति से बैठे रहो ,
खेलो, युधिष्ठिर !
*
बाँट में जो मिली अपने आप ,
कौन सा तुम
जीत लाये थे दिखा पुरुषार्थ .
चीज सबकी ,तुम्हें क्या संताप ,
रहे या जाये किसी के पास !
जो सुझाये वह, लगा दो दाँव,
तुम खेलो ,युधिष्ठिर !
*
यही है अभिसंधि का प्रारूप,
भाग पाओ यह नहीं वह द्यूत .
तुम निभाओ रीति-नीति आचार
घिर गये हो ,
तुम स्वयं लाचार !
फेंकता पाँसे किसी का हाथ ,
स्वीकारो युधिष्ठिर !
फड़ बिछी है ,
चल रहा है दौर ,
तुम खेलो, युधिष्ठिर !
*