(मातृभूमि की रक्षा में सतत तत्पर हमारे वीर जवानों के लिये जब कोई आपत्तिजनक भाषा बोलता है तो अंतर उद्वेलित हो उठता है. इस देश की प्रत्येक माँ के हृदय में अपने व्रती पुत्रों के प्रति जो भाव उमड़ते हैं उन्हें व्यक्त करने का एक प्रयास है यह कविता ..)
मातृभूमि के वीर जवानों से ....
ज़रा झुको तो वत्स, भाल पर मंगल तिलक लगा दूँ
उमड़े अंतर के भीगे आशीषों से नहला दूँ .
उन्नत भास्वर भाल भानु का जिस पर तेज निछावर
अंकित कर दूँ वहीं यशस्वी जय के संकेताक्षर .
कृती, तुम्हारी ओर नीति है ,न्याय, मनुजता का सच,
कितना संयम रख तुमने स्वीकारा वीरोचित व्रत.
मेरा दृढ़ दाहिना अँगूठा परसे चक्र तुम्हारा,
रंध्र-रंध्र से फूट चले नव-ऊर्जाओं की धारा .
ले लूँ सभी बलायें अक्षत-कण धर दूँ चुटकी भर
द्विधाहीन मन जो निश्चय कर डाले वही अटल है ,
तुम न अकेले साथ सदा मानव-सत्यों का बल है
यहाँ हमीं को निबटाना है पले हुये साँपों को
भितरघात करते द्रोही इन धरती के पापों को
शेष न रहने देंगे अब ऐसे पामर इस भू पर .
जननी की ममता तुम पर हो छाँह बनी सी छाई
बहनों के कच्चे धागों में कितनी आन समाई ,
वीर तुम्हारी प्रिया विकल हो पथ हेरे जब पल-पल ,
युद्धभूमि में उद्धत बनी जवानी तोड़े रिपुबल
आज हिसाब चुका लेने का मिला प्रतीक्षित अवसर .
हर संकट में व्याकुल हो धरती ने तुम्हें पुकारा ,
व्रती,तुरत आगे बढ़ तुमने हर-विधि हमें उबारा .
कष्टों भरा विषम जीवन जी बने रहे तुम प्रहरी ,
मातृभूमि के लिये हृदय में धारे निष्ठा गहरी .
अपने सारे पुण्यों का फल आज लुटा दूँ तुम पर !
कृती, प्रभंजन हार चले चरणों की गति के आगे ,
देख पराक्रम थिर न रहे बैरी का अंतर काँपे .
मत्त चंडिका झूम उठे पा अरिमुंडों की माला,
शत्रु स्तब्ध रह जाय कि किससे आज पड़ गया पाला
गूँज रहा हो 'जय-जय-जय' की ध्वनि से सारा अंबर !
सिर ऊँचाकर लौटो , कुशल मनाएँ यह मन पल-पल ,
नयनों के स्नेहाश्रु करें ओ व्रती , तुम्हारा मंगल !
फिर दीवाली हो,घर-घर फुलझड़ियाँ खील-बताशे ,
तुम आओ, यश की गाथायें चलें तुम्हारे आगे .
बिछा हुआ मेरा स्नेहांचल वत्स, तुम्हारे पथ पर .
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- प्रतिभा सक्सेना