आसरा मेरा ही लें और मुझ पे एहसान करें ,
बाहरी दुनिया से हुई इस कदर हताश हूँ मैं !
किसी को क्या पता कि क्यों उदास हूँ मैं !
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मैं इक किताब हूँ ,नंबर लगे सफ़होंवाली ,
इसकी इबारत नहीं कहने से बदल पाएगी ,
लाख टोको या लानत-मलामत भी करो
और किसी रूप में ढाले से न ढल पाएगी ,
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मैं जो मजमून हूँ कोरे सफ़हे पर छपा ,
लाख कोशिश करो उड़ पायेंगं कैसे हरूफ़ ,
भले गल जाय पानी में या लपटों में जले
उभर आएंगी वही सतरें लिए वो ही वजूद
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रंग फीके पड़े ,देखी है कितनी छाँह-धूप .
वर्क बिखरें जो हवा संग ही उड़ जाएंगे ,
मोड़ना चाहो तो वहीं इक दरार आएगी ,
टूटती सतरें अगर जोड़ीं, भरम पड़ जायेंगे
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वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये ,
इन पे लिक्खी जो इबारत वो बहुत पक्की है ,
क्यों करें परवाह कोई कहता है तो कहता रहे ,
ये जो मुसम्मात है , सचमुच में बड़ी झक्की है .
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कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे
टूट के भी ये किसी के काम नहीं आएगी .
चूर कर कोई नई-सी शक्ल न दे पाओगे ,
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इसका उन्वान सिरफ़ मेरी दास्तान नहीं
सबके अपने ही वहम ,और सबके अपने अहम्,
अपने को भूलूँ ,बँटूँ मैं या कि बिखर,चुप ही रहूँ
ठीक किसी को लगे तो मानना क्यों मेरा धरम?
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मैं भी इक इंसान हूँ ,तालीम औ तजुर्बा है ,
पाँव पर अपने खड़ी हूँ तो चल भी लूँगी ,
मैं क्यों गलत हूँ कि तुमसे अगर सलाह न लूँ ,
हो गई भूल कहीं फिर से सही कर लूँगी
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मैं समझ पाऊँ दुनिया ख़ुद का नजरिया लेकर
लगेगी ठोकर ज़रा कुछ और सँभल जाऊँगी
तुमको ही मलाल रह जायगा सुनती ही नहीं
दौड़ के हर बात पे रोने न बैठ जाऊँगी .
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चल रही हूँ रास्ता कुछ देर एक ही जो रहे
भूल से कोई न समझ ले उसी के साथ हूँ मै ,
तिल का ताड़ करना यहाँ पे शगल पुराना है
सोच कर हैरान हूँ चुप हूँ कि गुमहवास हूँ मैं ,
किसी को क्या पता ...
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