( 'नर्मदा और शोण' की लोक-कथा का घटना-क्रम भौगोलिक परिस्थितियों पर खरा उतरता है .बहुत दिनों से इस विषय का आकर्षण मुझे खींच रहा था .सूचनाएँ ,सूत्र आदि सामग्री-संचय के यत्न चलते रहे ,पर अब लग रहा है पूरी तैय्यारी शायद कभी न हो सके,बहुत देर करने से अच्छा है जैसा कुछ बन पड़े , वाणी के अर्पण कर देना उचित होगा.
बहुत लंबी नहीं खिंचेगी कथा - तीन से पाँच खंड तक ही सीमित करने प्रयत्न रहेगा. प्रस्तुत है प्रथम भाग -)
1
धरणी-धर हैं पर्वत,साधे क्षिति की हर अकुलाहट,
हर आहट ले रक्षा करता, अपनी रीढ़ सुदृढ़ रख .
पाहन-तन गिरि की मजबूरी ,पितृवत् करता पोषण
अंतर में करुणा की धारा बहती स्नेहसुधा सम .
2
आदि युगों से जिसका वर्णन करती पुरा-कथाएँ ,
जीवनदायी स्रोत बहातीं उन्नत गिरिमालाएँ ,
दुर्लभ भेंटें प्रकृति लुटाती ऋतुक्रम, अनुपम,अभिनव
शोभा भरी घाटियाँ बिखरातीं मरकत का वैभव.
3
धन्य अमरकंटक की धरती,धन्य कुंड ,वह पर्वत.
वन-श्री अमित संपदा धारे औषधियाँ अति दुर्लभ
स्कंद-पुराणे रेवा-खंडे जिसे व्यास ने गाया -
वह अपार महिमा कह पाना मेरे लिए असंभव !
4
भारत-भू का हृदय प्रान्त जो उन्नत दृढ़ वक्षस्थल ,
पयधारी शिखरों से पूरित ,वन उद्भिज से संकुल.
मेखल-गिरि के राज कुंड से प्रकटी उज्ज्वल धारा ,
ज्यों मणियों की राशि द्रवित हो बहे, कि चंचल पारा .
5
कितने पुण्य! धरा पर उतरी महाकाल की कन्या ,
कंकर-कंकर शंकर जिसका ,रूप-गुणमयी धन्या .
विंध्य और सतपुड़ा की बाहों में खुशियाँ भरती ,
धरती का वरदान , 'नर्मदा' नाम सार्थक करती .
6
झरना बन कर वहीं फूट आया जब नेह शिखर का,
सोनमुढ़ा से अविरल स्रोत बह चला निर्मल जल का .
'सोन' नाम धर दिया देख कर उसका वर्ण सलोना
जो देखे रह जाय ठगा-सा धर दो एक दिठौना.
7.
नाम नर्मदा प्यार भरा, पर रेवा भी कहलाई ,
उसे शोण की उछल-कूद वाली चंचलता भाई .
दोनों परम प्रसन्न खेलते क्रीड़ा करते चलते-
लड़ते-भिड़ते ,बातें करते, खिलखिल कर हँस पड़ते.
8.
आदिवासिनी एक प्रवाहिनि जुहिला और वहाँ थी ,
खग-मृग से आपूर्ण वनों की हरीतिमा में बहती.
रीति-नीति मर्यादा के संस्कार रहे अनजाने ,
वन्य समाजों के अपने आचार जोहिला माने ,
9.
एक राज कन्या, मेखल पर्वत की राजदुलारी ,
दूजी, महुआ-वन के मत्त पवन की सेवन हारी .
बचपन बीता शोण बढ़ गया अपनी गति में आगे ,
दोनों बालाओं ने जोड़े प्रिय सखियों के नाते .
10.
यौवन ने दोनों पर ही अपना अधिकार जमाया
एक दूसरी से दोनों ने अपना कुछ न छिपाया.
हँसती थी नर्मदा -मिली है कैसी मुझे सहेली -
जीवन उसके लिए सरल अति, मेरे लिए पहेली!
11.
राजकुँवरि के लिए योग्यतम आएगा प्रतियोगी.
आदिवासिनी कहीं वनों में अपना वर खोजेगी.
वीर शोण ने सिद्ध कर दिया अपना पौरुष अभिनव
मुग्ध हो गई कुँवरि, देख कर शौर्य, रूप ,कुल, वैभव.
*
(क्रमशः)
बहुत लंबी नहीं खिंचेगी कथा - तीन से पाँच खंड तक ही सीमित करने प्रयत्न रहेगा. प्रस्तुत है प्रथम भाग -)
1
धरणी-धर हैं पर्वत,साधे क्षिति की हर अकुलाहट,
हर आहट ले रक्षा करता, अपनी रीढ़ सुदृढ़ रख .
पाहन-तन गिरि की मजबूरी ,पितृवत् करता पोषण
अंतर में करुणा की धारा बहती स्नेहसुधा सम .
2
आदि युगों से जिसका वर्णन करती पुरा-कथाएँ ,
जीवनदायी स्रोत बहातीं उन्नत गिरिमालाएँ ,
दुर्लभ भेंटें प्रकृति लुटाती ऋतुक्रम, अनुपम,अभिनव
शोभा भरी घाटियाँ बिखरातीं मरकत का वैभव.
3
धन्य अमरकंटक की धरती,धन्य कुंड ,वह पर्वत.
वन-श्री अमित संपदा धारे औषधियाँ अति दुर्लभ
स्कंद-पुराणे रेवा-खंडे जिसे व्यास ने गाया -
वह अपार महिमा कह पाना मेरे लिए असंभव !
4
भारत-भू का हृदय प्रान्त जो उन्नत दृढ़ वक्षस्थल ,
पयधारी शिखरों से पूरित ,वन उद्भिज से संकुल.
मेखल-गिरि के राज कुंड से प्रकटी उज्ज्वल धारा ,
ज्यों मणियों की राशि द्रवित हो बहे, कि चंचल पारा .
5
कितने पुण्य! धरा पर उतरी महाकाल की कन्या ,
कंकर-कंकर शंकर जिसका ,रूप-गुणमयी धन्या .
विंध्य और सतपुड़ा की बाहों में खुशियाँ भरती ,
धरती का वरदान , 'नर्मदा' नाम सार्थक करती .
6
झरना बन कर वहीं फूट आया जब नेह शिखर का,
सोनमुढ़ा से अविरल स्रोत बह चला निर्मल जल का .
'सोन' नाम धर दिया देख कर उसका वर्ण सलोना
जो देखे रह जाय ठगा-सा धर दो एक दिठौना.
7.
नाम नर्मदा प्यार भरा, पर रेवा भी कहलाई ,
उसे शोण की उछल-कूद वाली चंचलता भाई .
दोनों परम प्रसन्न खेलते क्रीड़ा करते चलते-
लड़ते-भिड़ते ,बातें करते, खिलखिल कर हँस पड़ते.
8.
आदिवासिनी एक प्रवाहिनि जुहिला और वहाँ थी ,
खग-मृग से आपूर्ण वनों की हरीतिमा में बहती.
रीति-नीति मर्यादा के संस्कार रहे अनजाने ,
वन्य समाजों के अपने आचार जोहिला माने ,
9.
एक राज कन्या, मेखल पर्वत की राजदुलारी ,
दूजी, महुआ-वन के मत्त पवन की सेवन हारी .
बचपन बीता शोण बढ़ गया अपनी गति में आगे ,
दोनों बालाओं ने जोड़े प्रिय सखियों के नाते .
10.
यौवन ने दोनों पर ही अपना अधिकार जमाया
एक दूसरी से दोनों ने अपना कुछ न छिपाया.
हँसती थी नर्मदा -मिली है कैसी मुझे सहेली -
जीवन उसके लिए सरल अति, मेरे लिए पहेली!
11.
राजकुँवरि के लिए योग्यतम आएगा प्रतियोगी.
आदिवासिनी कहीं वनों में अपना वर खोजेगी.
वीर शोण ने सिद्ध कर दिया अपना पौरुष अभिनव
मुग्ध हो गई कुँवरि, देख कर शौर्य, रूप ,कुल, वैभव.
*
(क्रमशः)