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मैं उतने जन्म धरूँ तेरी गोदी में ,
तुम बिन बीतें जितनी सुबहें-संध्यायें ........'
उच्छल लहरों में खिलखिल हँसता रह तू
इन साँसों का सरगम तुझको ही गाए,
जाना आसान नहीं है दूर कहीं भी ,
मैं रहूँ कहीं भी लौट-लौट आऊँगी,
तेरे पावन दर्शन का संबल पा कर ,
खारे जल से कलुषों को धो जाऊँगी.
सम्मोहन से मन बाहर कब आ पाया ,
मृगतृष्णाओँ से प्यास बुझी कब कोई,
इस मानस में जो गहरे उतर समाए ,
उन सपनों की भी थाह नहीं है कोई
तू एक प्रेरणा है इस अंतर्मन की,
जो सदा जगाती रही भटकते मन को.
तेरा निरभ्र नभ प्रतिबिंबित प्राणों में
आश्वस्ति सतत देता अतृप्त जीवन को.
श्यामला धरा के हरे-भरे आँचल में
नाचो, मदमस्त धान की बालों नाचो
मैं उतने जन्म धरूँ तेरी गोदी में ,
तुम बिन बीतें जितनी सुबहें-संध्यायें ........'
उच्छल लहरों में खिलखिल हँसता रह तू
इन साँसों का सरगम तुझको ही गाए,
जाना आसान नहीं है दूर कहीं भी ,
मैं रहूँ कहीं भी लौट-लौट आऊँगी,
तेरे पावन दर्शन का संबल पा कर ,
खारे जल से कलुषों को धो जाऊँगी.
सम्मोहन से मन बाहर कब आ पाया ,
मृगतृष्णाओँ से प्यास बुझी कब कोई,
इस मानस में जो गहरे उतर समाए ,
उन सपनों की भी थाह नहीं है कोई
तू एक प्रेरणा है इस अंतर्मन की,
जो सदा जगाती रही भटकते मन को.
तेरा निरभ्र नभ प्रतिबिंबित प्राणों में
आश्वस्ति सतत देता अतृप्त जीवन को.
श्यामला धरा के हरे-भरे आँचल में
नाचो, मदमस्त धान की बालों नाचो
चिरतृप्ति समेटे अपनी उर्वरता में
जीवन के अणु-अणु को करुणा से पागो !
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