लहर लेती बह रही
शिप्रा अभी मेरे हृदय में .
नयन में जल बन समाया,
साँस में सौरभ बसाया ,
वही कल-कल नाद
अविरल गान बन कर उमड़ता.
देखो, नहीं सूखी .
*
कह रही वह
मैं नहीं सूखी ,
तुम्हीं ,जीवन-रसों से दूर हो,
उस चिर-पिपासित हरिण से
जो श्लथ-थकित होता विकल
पर दौड़ती तृष्णा कहीं थमती नहीं.
कान दे सुन लो कि शिप्रा कह रही है -
मैं नहीं सूखी , चुके तुम ,
बोध कुंठित हो गए ,
रूखे हुए मन,
चुक गई संवेदनाएँ.
*
एक दिन बह आयगा जल ,
एक दिन पत्थर पिघल
कर ही रहेंगे ,
यह नदी की राह सूखी नहीं,
मेरे अश्रु जल से सिंच रही ,
अविराम शिप्रा बह रही है .
*
जन्म मेरा और ,
शिप्रा के यही तट-घाट होंगे ,
शरद्-पूनो फिर दियों से झलमलाए,
द्रोणियों धर दीप लहरों में बहा ,
कुलनारियाँ ,आँचल पसार असीस पायें .
कौन रोकेगा मुझे,
मैं हूं चिरंतन ,
वह अनिर्वच कह रही है .
*
बुधवार, 22 सितंबर 2010
शनिवार, 18 सितंबर 2010
संबंध
*
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .
वही सहज होते हैं
.
अपनी मौजों में,अपने ढंग से
अपने रंग में लीन ,
रहते हैं संबध.
*
भुनाने की कोशिशें.
और अहं के ढेले फेंक ,
लहरें उठाने का चाव
बाधित कर देगा प्रवाह.
पारदर्शिता खो गँदला जाएगा.
निर्मल जल.
कीचड़ जमे तल में .
कैसे रहे प्रवाह तरल -सरल.
*
क्षेपकों की संरचना
घने वाग्जाल ,
ओझल जल-विवर
डुबोने वाले भँवर
जिनका कोई उपचार नहीं.
खा जाए चक्कर
पर उबरती है धारा,
खोजती अपना किनारा.
*
बाध्यता नहीं कि,
आत्मसात करे उन अग्राह्य अणुओं को ,
धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,
संबंध का निभाव परस्पर समझना.
उछाला गया आवेग
निष्फल आक्रोश ,
इसी तट बिखेर
रुख मोड़ ,
तोड़ देगी हर कारा.
*
शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली
अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,
प्रतिदान की अपेक्षा बिना
पाए निस्पृह नेह-क्षण,
जिन्हें लहराँचल में सँजोए
बह जाएगी आगे
संबंधों की धारा.
*
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .
वही सहज होते हैं
.
अपनी मौजों में,अपने ढंग से
अपने रंग में लीन ,
रहते हैं संबध.
*
भुनाने की कोशिशें.
और अहं के ढेले फेंक ,
लहरें उठाने का चाव
बाधित कर देगा प्रवाह.
पारदर्शिता खो गँदला जाएगा.
निर्मल जल.
कीचड़ जमे तल में .
कैसे रहे प्रवाह तरल -सरल.
*
क्षेपकों की संरचना
घने वाग्जाल ,
ओझल जल-विवर
डुबोने वाले भँवर
जिनका कोई उपचार नहीं.
खा जाए चक्कर
पर उबरती है धारा,
खोजती अपना किनारा.
*
बाध्यता नहीं कि,
आत्मसात करे उन अग्राह्य अणुओं को ,
धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,
संबंध का निभाव परस्पर समझना.
उछाला गया आवेग
निष्फल आक्रोश ,
इसी तट बिखेर
रुख मोड़ ,
तोड़ देगी हर कारा.
*
शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली
अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,
प्रतिदान की अपेक्षा बिना
पाए निस्पृह नेह-क्षण,
जिन्हें लहराँचल में सँजोए
बह जाएगी आगे
संबंधों की धारा.
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