*
सुकृति -सुमंगल मनोकामना ,पूरो भारति!
नवोन्मेषमयि ऊर्जा ,ऊर्ध्वगामिनी मति-गति !
*
तमसाकार दैत्य दिशि-दिव में , भ्रष्ट दिशायें ,
अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
शक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
अ्मृत सरिस स्वर अंतर भर-भर
विषम- रुग्णता करो विदारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
हो अवतरण तुम्हारा जड़ता-पाप क्षरित हो ,
पुण्य चरण परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
जन-जन पाये अमल-अचल मति !
मनोकामना पूरो भारति !
(पूर्व रचित)
*
- प्रतिभा.
सुकृति -सुमंगल मनोकामना ,पूरो भारति!
नवोन्मेषमयि ऊर्जा ,ऊर्ध्वगामिनी मति-गति !
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तमसाकार दैत्य दिशि-दिव में , भ्रष्ट दिशायें ,
अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति !
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निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
शक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
अ्मृत सरिस स्वर अंतर भर-भर
विषम- रुग्णता करो विदारित !
मनोकामना पूरो भारति !
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हो अवतरण तुम्हारा जड़ता-पाप क्षरित हो ,
पुण्य चरण परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
जन-जन पाये अमल-अचल मति !
मनोकामना पूरो भारति !
(पूर्व रचित)
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- प्रतिभा.