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सीता जी की मैया तो सासू तुम्हार भईँ ,राम जी कहाते तुम धरती के भरता ,
ताही सों कैकेयी दिबायो बनबास,तहाँ जाय के निसाचरन के भये संहर्ता.
मंथरा ने जाय के जनाई बात रानी को सुनि के बिहाल भई चिन्ता के कारनैं ,
दोष लै लीन आप ,कुल को बचाय दियो केकय सुता ने अपजस के निवारने ,
फिर हू तुम आय लै लीनो राज-पाट, तासों अवनि-सुता के भाग आयो वनवास है ,
बेटी और मात दोनों एक घरै कइस रहें कारन यही रह्यो हमारो मन जनात है .
सुधि हौ न लीन ,वा की मरत कि जियत ,बनैं माँ पठाय निहचिन्त भये राम जी .
ऐतो अपवाद सुनि ,छाँड़ि दियो साथ औ'विवाह के बचन को न राख्यो नेक मान जी,
अंत काल धरती में सीता समानी सरजू के जल माँहिं तुम लीन भए जाय के .
हुइ के गिरस्थ पूत-जाया न साथ , धर्म लीनो निभाय एक मूरत बनाय के .
पतनी की कनक मयी काया सों काज ,ताके मानस की थाह काहे पाई ना विचारि के,
अस्वमेघ जीत्यो जभै सीता के पुत्रन नें लै आए तिन्हें सब ही विधि हारि के .
पालक प्रजा के न्याय बाँटत जगत को पै आपनी ही संतति के पालक कहाए ना ,
राज-काज हेतु तीन भाई समर्थ तहूँ , जाया के सँग सहधर्मी बनि पाये ना .
लछिमन सो भाई ,हनुमान सो सुसेवक तुम्हार लागि आपुनो जनम जो न वारते ,
बड़ो नाम है तुम्हार,साधि रहे इ है चार, जो न होते राम- काज केहि विधि सँवारते .
सीता और कैकयी बिरथ बदनाम भईँ इन सम कोउ नहीं देख्यो निहकाम जी ,
भरत सो भाई ,विभीषण सो भेदी गए सुजस तिहारे ही नाम लिख्यो राम जी !
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