*
गुरु तो वह हुआ !
तुमने माँगा
उसने बिना झिझके
काट कर सौंप दिया ,
अपना अँगूठा .
सर्वश्रेष्ठ अनुर्धर का अँगूठा !
तुम तो पहले ही नकार चुके थे उसे
कहीं नहीं थे उसके साथ .
एकलव्य की ,
स्वार्जित उपलब्धि.
छीन ली तुमने .
सँजोई है कहीं ,
या फेंक दी वहीं ?
*
रह गए ,नितान्त लघु तुम !
द्रोण,कितने तुच्छ!
कितनी सहजता से एक ही झटके
में समाप्त कर दीं वह अनन्य निष्ठा ,
झटक कर तोड़ दिया अचल विश्वास !
*
कोई शिष्य गुरु के प्रति
हो पाएगा अब कभी उतना समर्पित?
भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
कि अब गुरुत्व
गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !
गुरु तो वह हुआ !
तुमने माँगा
उसने बिना झिझके
काट कर सौंप दिया ,
अपना अँगूठा .
सर्वश्रेष्ठ अनुर्धर का अँगूठा !
तुम तो पहले ही नकार चुके थे उसे
कहीं नहीं थे उसके साथ .
एकलव्य की ,
स्वार्जित उपलब्धि.
छीन ली तुमने .
सँजोई है कहीं ,
या फेंक दी वहीं ?
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रह गए ,नितान्त लघु तुम !
द्रोण,कितने तुच्छ!
कितनी सहजता से एक ही झटके
में समाप्त कर दीं वह अनन्य निष्ठा ,
झटक कर तोड़ दिया अचल विश्वास !
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कोई शिष्य गुरु के प्रति
हो पाएगा अब कभी उतना समर्पित?
भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
कि अब गुरुत्व
गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !
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