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रविवार, 22 अगस्त 2010

द्रोण,तुम !

*
गुरु तो वह हुआ !
तुमने माँगा
उसने बिना झिझके
काट कर सौंप दिया ,
अपना अँगूठा .
सर्वश्रेष्ठ अनुर्धर का अँगूठा !
तुम तो पहले ही  नकार चुके थे उसे
कहीं नहीं थे उसके साथ .
एकलव्य की ,
स्वार्जित उपलब्धि.
छीन ली तुमने .
सँजोई है कहीं ,
या फेंक दी वहीं ?
*
रह गए ,नितान्त लघु तुम !
द्रोण,कितने तुच्छ!
 कितनी सहजता से एक ही झटके
में समाप्त कर दीं  वह अनन्य निष्ठा ,
झटक कर तोड़ दिया अचल विश्वास !
*
कोई  शिष्य गुरु के प्रति
हो पाएगा अब  कभी उतना समर्पित?
 भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
कि अब गुरुत्व
गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !
*

रविवार, 15 अगस्त 2010

व्याध का तीर

*
ये सब तो मात्र  मोहरे थे
यहाँ की चालों के .
इस महासमर की भूमिका
बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी.
 *
जब बुढ़ापे  की सर्वनाशी वासना ,
यौवन का उजला भविष्य निगल गई.
स्वयंवरा कन्या को लूट का माल बना
निःसत्व रोगियों के हवाले कर दिया गया.
*
 वंश न पांडु का,  न कुरु का.
बीज बो गया  धीवर-कन्या का पुत्र
 भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में ,
उन  विकृत संतानो  का इतिहास कितना चलता ?
जहाँ विवश नारी ,
पति का मुख देखे बिना

आँखों पर पट्टी बाँध
यंत्रवत् पैदा कर दे सौ पुत्र

*
धर्म और नीति की ओट ले
 जो चालें चली गईं -
एक  द्रौपदी ही नहीं ,
क्या-क्या दांव लगाते गए वे लोग ,
होना ही था महासमर !
*
रामायण और महाभारत !
एक व्याध का  तीर
कर गया
एक युग-कथा का प्रारंभ ,
और दूसरी का समापन .
*
बीत गए दोनों ,
पर बीत कर भी
 कहीँ अटका ही रह गया है .
बहुत कुछ .
*


शनिवार, 7 अगस्त 2010

भूख -

*
बहुत भूख भरी है दुनियाँ में!
तरह-तरह की भूख -
भटका रही है , मृगतृष्णाओं में !
मन की भूख --
भोग की , धन की ,यश की , बल की ,
और भी अनेकानेक रूप धर
विकृत कर जाती है
कि पीछे भागता है आदमी
भूत की तरह !
*
पर बहुत दारुण है पेट की भूख !
जब आक्रमण करती है, ,
रक्त पीती ,चमड़ी सुखाती ,
आँतें मरोड़ आग सी लपलपाती
यह सर्वभक्षी सर्वव्यापी भूख
जब कुछ नहीं पाती तो अपने पात्र को ही चाटती है ,
अपनी तीक्ष्ण जिह्वा से
तिल-तिल कर सुखाती है ,
सोख लेती है एक-एक रोम उसके शरीर का !
*
जिसने सही है यह दारुण यंत्रणा,
किसी की भूख नहीं देख सकता !
क्योंकि, दसरे को देख
वह अपनी ही यंत्रणा को बार-बार जीता है १
अपने अन्न का अंतिम कण तक देकर
वह छुटकारा पाना चाहता है उस दुख से !
नहीं सह पाता वह किसी के पेट की भूख ,
नहीं सह पाता !
*