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रविवार, 22 अगस्त 2010

द्रोण,तुम !

*
गुरु तो वह हुआ !
तुमने माँगा
उसने बिना झिझके
काट कर सौंप दिया ,
अपना अँगूठा .
सर्वश्रेष्ठ अनुर्धर का अँगूठा !
तुम तो पहले ही  नकार चुके थे उसे
कहीं नहीं थे उसके साथ .
एकलव्य की ,
स्वार्जित उपलब्धि.
छीन ली तुमने .
सँजोई है कहीं ,
या फेंक दी वहीं ?
*
रह गए ,नितान्त लघु तुम !
द्रोण,कितने तुच्छ!
 कितनी सहजता से एक ही झटके
में समाप्त कर दीं  वह अनन्य निष्ठा ,
झटक कर तोड़ दिया अचल विश्वास !
*
कोई  शिष्य गुरु के प्रति
हो पाएगा अब  कभी उतना समर्पित?
 भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
कि अब गुरुत्व
गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !
*

7 टिप्‍पणियां:

  1. कोई शिष्य गुरु के प्रति
    हो पाएगा अब कभी उतना समर्पित?
    भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
    कि अब गुरुत्व
    गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !

    सटीक लेखन ....गुरु ड्रोन ही तो आधुनिक युग के गुरु कहलाये जो लोभवश शिक्षा देने की प्रथा डाल गए ...

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  2. द्रोण,कितने तुच्छ!

    सचमुच...तुच्छ ही तो था..

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  3. वाकई मार्मिक ...कहाँ जवाब है इसका....
    सम्मानित तो एकलव्य ही रहेगा !

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  4. बहुत सुन्दर रचना...श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर ढेर सारी बधाइयाँ !!

    ________________________
    'पाखी की दुनिया' में आज आज माख्नन चोर श्री कृष्ण आयेंगें...

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  5. प्रतिभा जी,

    यह कविता मैंने ई-कविता पर पढ़ी थी, लेकिन यहाँ पहुँचने के बाद पुनः पढ़ने का मोह नही छोड़ पाया।

    इस कविता की निम्न पंक्तियाँ, आज के दौर के सच को बिल्कुल नग्न कर देती हैं कि :-
    " कि अब गुरुत्व
    गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !"

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  6. 'कोई शिष्य गुरु के प्रति
    हो पाएगा अब कभी उतना समर्पित?'

    न न ! हर गुरु द्रोणाचार्य नहीं होगा :) और आजकल न अर्जुन हैं न ही एकलव्य.....:(

    'भविष्य को दे गए तुम संदेश ,
    कि अब गुरुत्व
    गुरु का अनिवार्य लक्षण नहीं रहा !'

    हम्म ये है बहुत वजनदार बात.....जाने द्रोण के इस कृत्य को किस प्रकार justified किया गया है... किया भी है अथवा नहीं??हम्म पता करती हूँ...:)
    बहुत अच्छी रचना....

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