सोमवार, 31 दिसंबर 2018

ब्लागर बंधु-बांधवियों को -

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ब्लागर बंधु-बांधवियों को ,
सादर-सप्रेम -

ले अपना हिस्सा, निकल चुका है विगत वर्ष ,
यह आगत लाये शान्ति और सौहार्द, मित्र!
इस विश्व पटल पर  मंगल-मंत्र उचार भरें
मानवता रच दे , जय-यात्रा के  भव्य-चित्र!
हम-तुम, प्रसाद पायें  सुरम्य संसार रहे ,
हिल्लोलित होता रहे  हृदय ले नवल हर्ष !
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- प्रतिभा सक्सेना.

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

अभिव्यक्ति की तृष्णा अतृप्त है तुम्हारे बिना.

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घर आँगन में चहकते,
माटी की गंध सँजोये
वे महकते शब्द,कहाँ खो गये !
सिर-चढ़े विदेशियों की भड़कीली भीड़ में ,
 अपने जन कहाँ ग़ायब हो गये !
 धरती के संस्कारों में रचे-बसे ,
वे मस्त-मौला कैसे  गुम गये !
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लौट आओ प्रिय शब्दों ,
पीढ़ियों की निजता के वाहक,
सहज अपनत्व भरे तुम,
जो जोड़ देते हो
उन सुनहले -रुपहले अध्यायों से,
हमें कालातीत करते .
*
लौट आओ
खो मत जाना,
कोश के गहरे गह्वरों में .
अभिव्यक्ति की तृष्णा
 अतृप्त है तुम्हारे बिना.
 अंतरंग ,आत्मीय बन भावातिरेक में
अऩायास उमड़ आते ओ मन-मित्र !
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लौट आओ,
 साथ देने,
कि उत्सव फीका न रह जाय
तुम्हारी आत्मीय उपस्थिति बिन .
 चार चांद जड़ते
वांछितार्थ संपन्न करने
लौट आओ.
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विवादी घुसपैठी दौड़ से अलिप्त,
ओ मेरे परम संवादी शब्दों,
वयःप्राप्त परिपक्वताधारे,
भाषा को संपूर्णता प्रदान करने ,
शीष उठा अपनी उसी भंगिमा में,
 चले आओ !
कोश के बंद पृष्ठों से उतर ,
आँगन की खुली हवा में
 लौट आओ !
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