*
ब्राह्मी से उद्भव ले विकसे जो देवनागरी के आखऱ,
अक्षर अक्षरशः सार्थक हैं, पीढ़ी-पीढ़ी का वैभव भर.
यह परम-ज्ञान संचय की लिपि, रच आदि-काव्य गरिमा मंडित.
ऋषि-मुनियों की संस्कृति संचित, हो विश्व निरामय संकल्पित.
मानव वाणी का यह चित्रण, धारे सारे स्वर औ'व्यंजन ,
अवयव सम्मत यह वर्गकरण, लघु-दीर्घ मात्राओं के सँग
स्वर-व्यंजन सब की अपनी गति,अनुस्वार विसर्ग करें मंडन
कितने प्रयास-कौशल से हो पाया होगा ध्वनि का अंकन
इसमें न कहीं कोई संभ्रम, समरूप पठन हो या लेखन ..
ले घोष-अघोष सभी ध्वनियाँ ,संवृत औ' विवृता स्थितियाँ ,
क्रमबद्ध वाक् का विश्लेषण ,अविकृत स्वरमाला का गुंथन ,
मानव-मुख निस्सृत जैसी ध्वनि, उसके ही नाम वही प्रतिध्वनि.
लिपि देह, मनस् है शब्द-बोध दर्पणवत् निर्मल प्रतिबिंबित ,
पंचम स्वर नासिक-ध्वनि सम्मित करता गुंजन से अभिमंत्रित
गहरे चिन्तन अनुभावन से ,ध्वन्यात्मक अक्षर-माल ग्रथित.
एकाग्र-चित्त हो रच डाली निर्मला गिरा आराधन हित .
वाणी के किसी तपस्वी ने ये दिये मंत्र जैसे उचार
आरोहण-अवरोहण क्रम से,इन बावन वर्णों को सँवार
कितनी संगत,संयत,अविकृत,सुरचित,तार्किक ध्वनि-संयोजित.
परिपूर्ण सहज,सुगठित लिपि,मानव-मेधा की अनुपम परिणति
भारति की मानस-वीणा से निस्सृत,अंबर में गये बिखर
चुन-चुन कर लिपि में समा लिये जिज्ञासु उपासक ने ,वे स्वर
ये देवगिरा, ये वज्राक्षर , भारती संस्कृति-धर अगाध
बोधित शब्दों के सार्थवाह, निर्बाध निरंतर हो प्रवाह,!
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ब्राह्मी से उद्भव ले विकसे जो देवनागरी के आखऱ,
अक्षर अक्षरशः सार्थक हैं, पीढ़ी-पीढ़ी का वैभव भर.
यह परम-ज्ञान संचय की लिपि, रच आदि-काव्य गरिमा मंडित.
ऋषि-मुनियों की संस्कृति संचित, हो विश्व निरामय संकल्पित.
मानव वाणी का यह चित्रण, धारे सारे स्वर औ'व्यंजन ,
अवयव सम्मत यह वर्गकरण, लघु-दीर्घ मात्राओं के सँग
स्वर-व्यंजन सब की अपनी गति,अनुस्वार विसर्ग करें मंडन
कितने प्रयास-कौशल से हो पाया होगा ध्वनि का अंकन
इसमें न कहीं कोई संभ्रम, समरूप पठन हो या लेखन ..
ले घोष-अघोष सभी ध्वनियाँ ,संवृत औ' विवृता स्थितियाँ ,
क्रमबद्ध वाक् का विश्लेषण ,अविकृत स्वरमाला का गुंथन ,
मानव-मुख निस्सृत जैसी ध्वनि, उसके ही नाम वही प्रतिध्वनि.
लिपि देह, मनस् है शब्द-बोध दर्पणवत् निर्मल प्रतिबिंबित ,
पंचम स्वर नासिक-ध्वनि सम्मित करता गुंजन से अभिमंत्रित
गहरे चिन्तन अनुभावन से ,ध्वन्यात्मक अक्षर-माल ग्रथित.
एकाग्र-चित्त हो रच डाली निर्मला गिरा आराधन हित .
वाणी के किसी तपस्वी ने ये दिये मंत्र जैसे उचार
आरोहण-अवरोहण क्रम से,इन बावन वर्णों को सँवार
कितनी संगत,संयत,अविकृत,सुरचित,तार्किक ध्वनि-संयोजित.
परिपूर्ण सहज,सुगठित लिपि,मानव-मेधा की अनुपम परिणति
भारति की मानस-वीणा से निस्सृत,अंबर में गये बिखर
चुन-चुन कर लिपि में समा लिये जिज्ञासु उपासक ने ,वे स्वर
ये देवगिरा, ये वज्राक्षर , भारती संस्कृति-धर अगाध
बोधित शब्दों के सार्थवाह, निर्बाध निरंतर हो प्रवाह,!
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