ओ,चरवाहे ! सँग-सँग मुझे लिए चल.
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घंटी गले बाँध दी ऐसी ,छन-छन भान जगाए ,
तेरे आँक छपे माथे पर, बाकी कौन उपाए .
हेला दे, ले साथ .कहीं यों रह न जाउँ मैं एकल !
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अंकुश बिन ,पगहे बिन, भरमा पशु तेरा मनमाना,
पहुँच वहीं तक गुज़र वहीं पर, तेरी घेर ठिकाना ,
रेवड़ की गिनती में अपनी,तू ही हाँक लिए चल !
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लौट रहे पग घूल उड़ाते, संझा धुंध बिखेरे ,
अपने खूँटे गड़े जहाँ पर उसी छान में तेरे .
रे अहीर , इस छुट्टेपन को तू सँभाल, दे संबल !
सँग-सँग मुझे लिए चल !
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