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यज्ञ अभी तो शुरू हुआ है ,समिधायें चेती हैं अब तो,
अभी फूल-फल अक्षत रोली दे-दे कर पूजा है सबको,
अभी होम का धूम उठेगा ,कडुआहट से दृष्टि आँजने
अभी आँच से दूर हाथ हैं ,सघन ताप का क्रम है बाकी .
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अभी नारियल तन का धरा समूचा , फोड़ा किया न अर्पित ,
देवि चंडिका कहाँ हुई हैं अभी रक्त-चंदन से चर्चित
खप्पर कहाँ भभूति भस्म बन हुआ साधकों के हित रक्षित
तन की राख व्यर्थ काहे को , पावन हो भभूति बन जाती .
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समिधाओं की ज्वालायें हत हो, मंद न पल भर को हो पाये ,
हवन कुंड में आहुतियों के अर्पण का क्रम टूट न जाये ,
पुरश्चरण तक कोई भी व्यवधान ,विघ्न ना आये आड़े
होता आहुति बन बैठा रक्ताभ हुईं आवेशित आँखी ,
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अभी न श्रीफल चढ़ा वेदिका , कैसे अधबिच भोग चढ़ाये
अभी कहाँ यजमान ,स्वस्ति-वाचन को अंजलि में जल पाये !
अभी राख तल में बैठी है अभी उड़ रही हैं चिन्गारी ,
दहके अंगारों से उठती लपटें अभी कहाँ हैं नाची !
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अभी पुरोहित मंत्र पाठ कर ,बोल उठेगा ,स्वाहा-स्वाहा
चूक न हो जाये कि कुंड से हट कर व्यर्थ नसाये काया ,
होम गंध यों व्यापे सारा कल्मष-कपट हवा हो जाये
दुर्निवार आमंत्रण की ध्वनि ,आर-पार दिशि छोर कँपाती ,
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और प्रज्ज्वलित हो यह ज्वाला ,थोड़ी घी की धार समर्पो ,
भर दो थाल हवन सामग्री तन-मन प्राणों का मिश्रण दो
ओ यजमान ,तुम्हारा व्रत पूरा हो, पुरे सभी मनचाहा
महायज्ञ की अग्नि दहकती, मंत्र-पाठ की ध्वनि घहराती !
अभी बहुत आहुतियाँ बाकी !
- प्रतिभा.
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