*
पाप का पहले करो प्रतिकार
क्रम बदल दो एक ही उपचार
मन बदल दो यही शापोद्धार !
*
तन मिला जो तुम्हें परम समर्थ ,
मन मिला औ' बुद्धि, सोच-विचार ..
जन्म सार्थक हुआ क्या मनु-पुत्र ,
प्राप्त कर इतना रुचिर संसार?
*
तोड़ डाली पर्वतों की रीढ़,
घोल कर विष ,बाँध दी जलधार .
खोखली कर दी धरा की कोख
और उस पर घोर अत्याचार.
वायु और प्रकाश का आकाश
विकल धूमिल हो रहा उद्भ्रान्त,
घाटियों में भरा हाहाकार !
*
ऋत नियम ले कर चली थी सृष्टि
प्रकृति ही तो सुकृति,शिव की शक्ति,
वशीभूता हो यही उद्देश्य.
विश्व-द्रोही तू बना भर दंभ
नाचता भस्मासुरी धर दाँव ,
ताल दे उन्मत्त और अबाध .
*
पंचभूत उठे, लिये फुँकार ,
तोड़ जागे भूतनाथ समाधि .
*
तू हुआ निरुपाय निर् आधार,
सिर झुका रोता पुकार-पुकार !
गिड़गिड़ाता टेरता असहाय,
दोष का लेकिन कहाँ निरवार ?
*
काल चेताता रहा हर बार -
क्रम बदल दो एक ही उपचार
फलें जिससे शान्ति-सुख के मंत्र
स्वस्तिमय हो जगत-जीवन-तंत्र
'पाप का पहले करो प्रतिकार' !
मन बदल दो यही शापोद्धार !
*
पाप का पहले करो प्रतिकार
क्रम बदल दो एक ही उपचार
मन बदल दो यही शापोद्धार !
*
तन मिला जो तुम्हें परम समर्थ ,
मन मिला औ' बुद्धि, सोच-विचार ..
जन्म सार्थक हुआ क्या मनु-पुत्र ,
प्राप्त कर इतना रुचिर संसार?
*
तोड़ डाली पर्वतों की रीढ़,
घोल कर विष ,बाँध दी जलधार .
खोखली कर दी धरा की कोख
और उस पर घोर अत्याचार.
वायु और प्रकाश का आकाश
विकल धूमिल हो रहा उद्भ्रान्त,
घाटियों में भरा हाहाकार !
*
ऋत नियम ले कर चली थी सृष्टि
प्रकृति ही तो सुकृति,शिव की शक्ति,
वशीभूता हो यही उद्देश्य.
विश्व-द्रोही तू बना भर दंभ
नाचता भस्मासुरी धर दाँव ,
ताल दे उन्मत्त और अबाध .
*
पंचभूत उठे, लिये फुँकार ,
तोड़ जागे भूतनाथ समाधि .
*
तू हुआ निरुपाय निर् आधार,
सिर झुका रोता पुकार-पुकार !
गिड़गिड़ाता टेरता असहाय,
दोष का लेकिन कहाँ निरवार ?
*
काल चेताता रहा हर बार -
क्रम बदल दो एक ही उपचार
फलें जिससे शान्ति-सुख के मंत्र
स्वस्तिमय हो जगत-जीवन-तंत्र
'पाप का पहले करो प्रतिकार' !
मन बदल दो यही शापोद्धार !
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