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नयन अनायास भर आते हैं कभी,
यों ही बैठे बैठे!
नहीं ,
कोई दुख नहीं ,
कोई हताशा नहीं ,
शिकायत भी किसी से नहीं कोई.
क्रोध ? उसका सवाल ही नहीं उठता .
जाने क्यों बूँदे झर पड़ती है ,
बस ,यों ही चुपचाप बैठे .
कारण कुछ नहीं !
मन ही तो है!!
यों ही उमड़ पड़े कभी,
कभी बादल कभी धूप
कहाँ तक रहे बस में !
जाने दो !
मन को मन ही रहने दो ,
जीवन यों ही चलता है