*
कृष्ण ,तुम्हारे श्री-चरणों में , मेरे गुण औ दोष समर्पित !
जनम भटकते बीता,अब बस इतना करो कि मिटें द्विधायें,
यह गठरी अब तुम्हीं सँभालो, करो वही जो तुम्हें सुहाये ,
किया-धरा सब तुम्हें सौप हों जायें राग-विराग विसर्जित !
क्षमता इतनी दो कि निभा जाऊं जो कुछ हिस्से में आया ,
डोर तुम्हीं से संचालित ये सभी तुम्हारा रास रचाया ,
मेरे भाव-अभाव तुम्हारे , तुमसे रचित तुम्हीं से प्रेरित !
अंतर्यामी ,तुम ही समझो मेरा कौन और, जो जाने ,
परखनहारे ,तेरे आगे टिक पाये कब कौन बहाने .
दोनों खाली हाथ जोड़,बढ़ जाऊं आगे हो कर थिर-चित् !
*
- प्रतिभा.
कृष्ण ,तुम्हारे श्री-चरणों में , मेरे गुण औ दोष समर्पित !
यह गठरी अब तुम्हीं सँभालो, करो वही जो तुम्हें सुहाये ,
किया-धरा सब तुम्हें सौप हों जायें राग-विराग विसर्जित !
क्षमता इतनी दो कि निभा जाऊं जो कुछ हिस्से में आया ,
डोर तुम्हीं से संचालित ये सभी तुम्हारा रास रचाया ,
मेरे भाव-अभाव तुम्हारे , तुमसे रचित तुम्हीं से प्रेरित !
अंतर्यामी ,तुम ही समझो मेरा कौन और, जो जाने ,
परखनहारे ,तेरे आगे टिक पाये कब कौन बहाने .
दोनों खाली हाथ जोड़,बढ़ जाऊं आगे हो कर थिर-चित् !
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- प्रतिभा.