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शीश चढ़ा कर बलिवेदी पर यज्ञकंड में आहुति बन कर,
वीर शहीद कर गये अपनी,जन्मभूमि पर प्राण निछावर .
तब भयभीत फिरंगी भागा लेकिन डाल गया जो फंदा,
देश तोड़ कर गया कुचक्री जो था सदा नियत का मंदा
जुड़ें बिखरती कड़ियाँ फिर से, ये ही अब व्रत रहे हमारा !
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कैसे कैसे लोग मूँग दल रहे हैं माँ की छाती पर ,
अपना उल्लू साध रहे, भाषा संस्कृति सब दाँव लगा कर .
कुछ घर में ही ,कुछ बाहर जा बैठे अपनी घात लगाए .
खड़ा पीठ में छुरा भोंकने कोई हाथ-पाँव फैलाए.!
हम अपनी सामर्थ्य दिखा कर स्वयं करें अपना निपटारा !
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कायर बने ओढ़ कर फटा लबादा वही अहिंसावाला ,
अपने प्रहरी झोंक, तापते दुश्मन की चेताई ज्वाला .
सबको उत्तर देने का दम ,स्वाभिमान से रहने का प्रण ,
वही करें नेतृत्व राष्ट्र का स्वच्छ पारदर्शी जिनके मन .
स्वार्थ और संकीर्ण वृत्ति, निर्णीत न करे विधान हमारा !
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कहीं अस्मिता अपनी गुम न जाय इस फैली चकाचौंध में
जागो मेरे देश वासियों ,शामिल मत हो अंध दौड़ में
जीवन के सच खोज-शोध भंडार भरा असली निधियों से .
कहीं न बिक जाये गैरों के हाथ ,जुड़ा था जो सदियों से
जन-जन जागो ,दमक उठे जो धुँधलाया अपना ध्रुव-तारा !
तब गूँजे अपना जयकारा !
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Anyways.....
bahut aam sa drishya hai..bhaarteeya parivesh mein aksar dekhne mil jata hai.....magar kuch cheezein behad khaas lagin......
सहने की सीमा पार ,
जिजीविषा भभक उठी खा-खा कर वार
bahut hi achha laga ye padhkar....bahut zyada anyaay insaan ko maarta kam hai....zyadatr wo unko unki apni shakti pehchanne ki kshamta pradaan karta hai.......ek thresh hold level k baad har naari ablaa se maa kaali ban hi jaati hai.........jeejivisha ka bhabhak uthna...bahut achhi pankti likhi aapne.....
सारी लज्जा दे मारी उन्हीं पर !
पशुओं से क्या लाज ?
lajja de marna...bahut achhi line...
वहां कोई शिव नहीं था !
सब शव थे !
ghazab ka samapan....literally yahi shabd likle the kavita ka ant padhkar....
ye shiv aur shav ka taalmel yaad rahega Ma'am..