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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

चलती बार ..



प्रस्थान की बेला,

चिर-प्रतीक्षित गंतव्य की ओर,

उत्तर दिशि वन-पगडंडियाँ ,

मन शान्त ,पुलकित !

*

सारा कुरुक्षेत्र बीता ,

राज पाट निरर्थक.

मान-अपमान ,शाप-ताप, सुख-दुख ,

सारे मनस्ताप छूटें यहीं .

इन्द्रियों के पाँच पाण्डव ,

अंतराग्नि-संभवा द्रौपदी सहित चलते हैं

देवात्मा हिमालय का

अपरिमित विस्तार है जहाँ !

*

अनायास होते रहे

मोहमयी मानसिकता के

दोष-अपराध,क्षमा कर

बिदा दो मीत ,

और आशीष भी

कि इस यात्रा का पुनरावर्तन न हो !

*

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

नचारी - राम जी


*

सीता जी की मैया तो सासू तुम्हार भईँ ,राम जी कहाते तुम धरती के भरता ,

ताही सों कैकेयी दिबायो बनबास,तहाँ जाय के निसाचरन के भये संहर्ता.

मंथरा ने जाय के जनाई बात रानी को सुनि के बिहाल भई चिन्ता के कारनैं ,

दोष लै लीन आप ,कुल को बचाय दियो केकय सुता ने अपजस के निवारने ,

फिर हू तुम आय लै लीनो राज-पाट, तासों अवनि-सुता के भाग आयो वनवास है ,

बेटी और मात दोनों एक घरै कइस रहें कारन यही रह्यो हमारो मन जनात है .

सुधि हौ न लीन ,वा की मरत कि जियत ,बनैं माँ पठाय निहचिन्त भये राम जी .

ऐतो अपवाद सुनि ,छाँड़ि दियो साथ औ'विवाह के बचन को न राख्यो नेक मान जी,

अंत काल धरती में सीता समानी सरजू के जल माँहिं तुम लीन भए जाय के .

हुइ के गिरस्थ पूत-जाया न साथ , धर्म लीनो निभाय एक मूरत बनाय के .

पतनी की कनक मयी काया सों काज ,ताके मानस की थाह काहे पाई ना विचारि के,

अस्वमेघ जीत्यो जभै सीता के पुत्रन नें लै आए तिन्हें सब ही विधि हारि के .

पालक प्रजा के न्याय बाँटत जगत को पै आपनी ही संतति के पालक कहाए ना ,

राज-काज हेतु तीन भाई समर्थ तहूँ , जाया के सँग सहधर्मी बनि पाये ना .

लछिमन सो भाई ,हनुमान सो सुसेवक तुम्हार लागि आपुनो जनम जो न वारते ,

बड़ो नाम है तुम्हार,साधि रहे इ है चार, जो न होते राम- काज केहि विधि सँवारते .

सीता और कैकयी बिरथ बदनाम भईँ इन सम कोउ नहीं देख्यो निहकाम जी ,

भरत सो भाई ,विभीषण सो भेदी गए सुजस तिहारे ही नाम लिख्यो राम जी !

*

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

नव-संवत्सर पर


पथ के साथी !
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नव-संवत्सर पर हम सबकी शुभ-कामनाएँ विश्व-मंगल का हेतु बने !


भारतीय-मनीषा ने जीवन को कभी देश,धर्म आदि की संकुचित सीमाओं में नहीं बाँधा ,वसुधा को एक कुटुंब सम देखा है - सबके साथ आप और हम भी आनन्द और उत्कर्ष को प्राप्त करें !

माँ ,नव-ऊर्जा के इस उदय-काल में तुम्हारी शक्तियों के सभी स्वरूप मंगल का विधान और अमंगल का शमन करें !
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- प्रतिभा सक्सेना.