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बुधवार, 22 सितंबर 2010

अनिर्वच

लहर लेती बह रही

शिप्रा अभी मेरे हृदय में .

नयन में जल बन समाया,

साँस में सौरभ बसाया ,

वही कल-कल नाद

अविरल गान बन कर उमड़ता.

देखो, नहीं सूखी .

*

कह रही वह

मैं नहीं सूखी ,

तुम्हीं ,जीवन-रसों से दूर हो,

उस चिर-पिपासित हरिण से

जो श्लथ-थकित होता विकल

पर दौड़ती तृष्णा कहीं थमती नहीं.

कान दे सुन लो कि शिप्रा कह रही है -

मैं नहीं सूखी , चुके तुम ,

बोध कुंठित हो गए ,

रूखे हुए मन,

चुक गई संवेदनाएँ.

*

एक दिन बह आयगा जल ,

एक दिन पत्थर पिघल

कर ही रहेंगे ,

यह नदी की राह सूखी नहीं,

मेरे अश्रु जल से सिंच रही ,

अविराम शिप्रा बह रही है .

*

जन्म मेरा और ,

शिप्रा के यही तट-घाट होंगे ,

शरद्-पूनो फिर दियों से झलमलाए,

द्रोणियों धर दीप लहरों में बहा ,

कुलनारियाँ ,आँचल पसार असीस पायें .

कौन रोकेगा मुझे,

मैं हूं चिरंतन ,

वह अनिर्वच कह रही है .

*

शनिवार, 18 सितंबर 2010

संबंध

*
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .

वही सहज होते हैं
.
अपनी मौजों में,अपने ढंग से

अपने रंग में लीन ,

रहते हैं संबध.

*

भुनाने की कोशिशें.

और अहं के ढेले फेंक ,

लहरें उठाने का चाव

बाधित कर देगा प्रवाह.

पारदर्शिता खो गँदला जाएगा.

निर्मल जल.

कीचड़ जमे तल में .

कैसे रहे प्रवाह तरल -सरल.

*

क्षेपकों की संरचना

घने वाग्जाल ,

ओझल जल-विवर

डुबोने वाले भँवर

जिनका कोई उपचार नहीं.

खा जाए चक्कर

पर उबरती है धारा,

खोजती अपना किनारा.

*

बाध्यता नहीं कि,

आत्मसात करे उन अग्राह्य अणुओं को ,

धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,

संबंध का निभाव परस्पर समझना.

उछाला गया आवेग

निष्फल आक्रोश ,

इसी तट बिखेर

रुख मोड़ ,

तोड़ देगी हर कारा.

*

शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली

अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,

प्रतिदान की अपेक्षा बिना

पाए निस्पृह नेह-क्षण,

जिन्हें लहराँचल में सँजोए

बह जाएगी आगे

संबंधों की धारा.

*