सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

धनवंतरि- वंदना एवं अभिनन्दन!


(धन-तेरस  के शुभ-दिवस हेतु  मेरी मित्र  'शार्दुला नोगजा ' ने यह सुन्दर 'धनवंतरि-वंदना ' प्रेषित की है ,ये कल्याणकारी भावनाएँ मेरे सभी मित्र एवं परिजन  आत्मस्थ कर सकें , इसलिए यहाँ  प्रस्तुत कर रही हूँ.
मैं आभारी हूँ  प्रिय शार्दुला की,   इन मंगलमय-वचनों  के लिए - )

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धनवंतरि, वंदन अभिनन्दन
दैनन्दिन जीवन में नित हम 
पाएं आशातीत पराक्रम 
खिलती रहे हर्ष की बगिया 
मिलती रहे सफलता अनुपम 

चिंतन में सच्चिदानन्द का 
महक उठे चन्दन ही चन्दन 
धनवंतरि, वंदन अभिनन्दन!

हम निश्छल हों, रहें निरामय 
हमें बना दो निर्मल निर्भय 
न्याय नीति स्थापित कर जग में 
दूर करें जन-जन का संशय 

उपकारों का नेह बहा कर 
हरें दीन दुखियों का क्रंदन 
धनवंतरि, वंदन अभिनन्दन 

स्वस्थ रहे हम, करो अनुग्रह 
भार न बनने पाये दुर्वह 
रोम-रोम में रहे हमारे 
अंतहीन उर्जा का संग्रह 

हमें लक्ष्य के इस जय-पथ में 
दीर्घ आयु का दो अवलम्बन 
धनवंतरी वंदन अभिनन्दन!
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( बचपन में  किसी अखबार से उतारी थी ये प्रार्थना। लेखक का नाम नहीं उतारा था. हर साल आरती की तरह इसे ही गाते हैं! - शार्दुला नोगजा )
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श्री  धनवंतरि-वंदन के अनंतर
 आप सब को अर्पित हैं ज्योतिपर्व की मंगल-कामनाएँ -
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रोशनी के जाल यों बुने ,
किरन-तंतु कात कर  शिखा ,
ओढ़नी उजास की बने ,
श्याम-देहिनी महानिशा !
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वायु-जल सुस्निग्ध-स्वस्थ हों,
करे अष्ट-लक्ष्मि  अवतरण !
खील-सी बिखर चले हँसी ,
शुभ्र फेनि* सा हरेक मन !

(*बताशफेनी)
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दीपावली का पर्व मंगलमय हो !
 - प्रतिभा सक्सेना
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 (चित्र - गूगल से साभार)




9 टिप्‍पणियां:

  1. दीप पर्व आप को सपरिवार सइष्ट समित्र शुभ हो ।

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  2. सुन्दर प्रार्थना ... आरती के बोल दिन के महत्त्व को बताते हैं ...
    आपको भी दीपावली की हार्दिक बधाई ...

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  3. भावमयी प्रार्थना...निरामय, निर्मल और निर्भयं हुए बिना लक्ष्य पर जाया नहीं जा सकता...दीपावली की शुभकामनायें आपको और शार्दुला जी को भी..

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  4. adbhut prarthna hai...ek ek pankti us alaukik agyaat kee divya sugandh me lipti hui hai...itr kee bhanti aatma me utarti bikharti ja rahi hai.ek saath sab kuch samaya hua wo bhi pravah me. nishchit hi pratidin pratipal dohrane yogya. :''-)

    aaj ye ek chaupayi aayi thi paper me..ek dum aisi hi..is prathna jaisi.
    एक मै मंद मोहबस कुटिल अज्ञान। पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ भगवान।। जदपि नाथ बहु अवगुन मोरे। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरै।।
    ...sab kuch us parmatma se chahiye unki ke sansaar ko dene ke liye...:')

    anayas hi Jagjit Singh kee aawaz zehan me gaa uthi...''maine tujhse chaand sitaare kab maange..raushan dil bedar nazar de ya allaah..''.
    bahut bahut aabhar is prarthna ko sabse baantne ke liye.main bhi sabse share karungi. Shardula ji ko bhi dher sara aabhar...unse seekh bhi mili mekro ki har achhi cheez sahej ke rakh liya akrun...aur sabse baantu bhi use..:):)

    wo jaise yagya ke ant me kam kam hawan saamagri bachti hai aur pandit ji sabka haath lagwa ke aahuti padwaate hain na..maine waise hi aapki prarthna ke donon chhandon me apna haath laga diya....:D meri aur mere radha kishnu kee taraf se bhi aapko shubhkamnayein Dhanteras kee.

    :D

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  5. दीपावली की तरह आपका अंतस भी सदैव ज्योतिर्मय रहे प्रतिभाजी!
    आपको प्रणाम करती हूँ, यूं ही आशीष बनाये रखिये!

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