रविवार, 12 अक्टूबर 2014

पहला दीप -

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मेरे बच्चों, दीवाली का पहला दीप वहाँ धर आना...

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जिस घर से कोई निकला हो अपने सिर पर कफ़न बाँधकर ,
सुख-सुविधा, घर-द्वार छोड़ कर मातृभूमि के आवाहन पर .
बच्चों, उसके घर जा कर तुम उन सबकी भी सुध ले लेना
खील-बताशे लाने वाला कोई है क्या उनके भी घर.
अपने साथ उन्हें भी थोड़ी ,इस दिन तो खुशियाँ दे आना .
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छाँह पिता की छिनी सिरों से जिनकी, सिर्फ़ हमारे कारण 
हम सब रहें सुरक्षित .जो बलिदान कर गए अपना जीवन
बूढ़े माता-पिता विवश से , आदर सहित चरण छू लेना,
अपने साथ हँसाना ,भर देना उनके मन का सूनापन ,
आदर-मान और अपनापन दे कर उनका आशिष पाना !
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दीवाली की धूम-धाम से अलग न वे रह जायँ अकेले ,
तुम सुख-शान्ति पा सको, इसीलिए तो उनने यह दुख झेले.
उन सबका जीवन खो बैठा धूम-धाम फुलझड़ी पटाखे ,
रह न जायँ वे अलग -थलग जब लगें पर्व-तिथियों के मेले.
उनकी जगह अगर तुम होते, यही सोच सद्भाव दिखाना .
 *
हम निचिंत हो पनप सके वे मातृभूमि की खाद बन  गये ,
रक्त-धार से सींची माटी  ,सीने पर ले घाव सो गए  .
वह उदास नारी, जिसके माथे का सूरज अस्त हो गया ,
तुम क्या दे पाओगे ,जिसके आगत सभी विहान  खो गए !
उसने तो दे दिया सभी कुछ, अब तुम उसकी आन निभाना.
*
अपने जैसा ही समझो, उन का मुरझाया जो बेबस  मन ,
देखो ,बिना दुलार -प्यार के बीत न जाए कोई बचपन .
न्यायोचित व्यवहार यही है- उनका हिस्सा मिले उन्हें ही ,
वे जीवन्त प्रमाण रख गए, साधी कठिन काल की थ्योरम
अपनी ही सामर्थ्यों से, बच्चों तुम 'इतिसिद्धम्' लिख जाना !
*
थ्योरम = Theorem.,प्रमेय .

12 टिप्‍पणियां:

  1. मन का कोई कोना भीगने के साथ साथ गौरव का अनुभव भी करा गया ... आपकी लेखनी को नमन ...

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  2. बहुत सुंदर संदेश देती पंक्तियाँ...उन वीरों को सदा ही याद करना है जिनके कारण हम स्वतन्त्रता की श्वास ले रहे हैं...आज भी सीमा पर वे हिम्मत से डटे हैं..

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  3. आदरणीया नमन आपको --
    नयी पीढ़ी को सचेत और सार्थक संदेश देती अदभुत रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति ---
    सादर ---

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  4. एक नए अंदाज एवं शैली में प्रस्तुत आपकी पोस्ट अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।धन्यवाद।

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  5. शकुन्तला बहादुर14 अक्टूबर 2014 को 6:12 pm बजे

    नयी पीढ़ी को दिशा-निर्देश करती इस प्रेरक कविता ने जहाँ राष्ट्रधर्म का
    निर्वाह करते हुए मानवता का संदेश दिया है , वहीं राष्ट्र के लिये प्राणों को निछावर करने वाले वीरों के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि भी समर्पित की है ।
    उदात्त भवना की इस प्रस्तुति ने मन को छू लिया । एक अनुपम रचना !!

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  6. abhi kuch din hue padha tha ek kitaab me...k hum insan hain aur hume roz yun jeena chahiye ki duniya behtar hoti jaaye. aapki kavita kitni sarthak hai is pariprekshya mein. aankhein bheeg uthin.sehmat hoon Shakuntala ji se. main to focus karti reh gayi kewal sandesh par.. sahi hi to shraddhanjali bhi hai :''-)
    kitta achha hriday hai aapka...kitna prem samaya hua hai. mann shubh bhavnaon se sarabor ho utha hai kavita padhne ke baad. apne hriday ap aapke shabdon ka sparsh anubhav kar rahi hoon...bheegi palkein liye. dincharya yantrvatt chalte rehti hai to yaad hi nai aaya..dhyan se nikla rehta hai..k hum itne yantrvatt surakshit chalte rehte hain uske peechhe kitne logon aur pariwaron ke balidaan hain. naman aapko...lekhni ko aur desh ke sipahiyon ko bhi. :""-)

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  7. Adbhut rachna .... Prernadayak prastuti ... Mujhe behad pasand aayi ...shukriya padhwaane ke liye !!

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  8. ओ बाबा! कितनी सुन्दर कविता लिखी है आपने! जितना सुनीतिपूर्ण आवाह्न , उतने ही सुरुचिपूर्ण बिम्ब!
    मन द्रवित हो गया पढ़ के प्रतिभाजी!

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