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चल रे हर सिंगार तुझे मैं साथ ले चलूँ.
चंदन कुंकुंम धारे तरु डालों पर जगतीं दीप शिखाएँ ,
संध्या के रेशमी पटों में शीतल सुरभित श्वास समाये
इस जीवन से माँग-जाँच कर थोड़ा-सा मधुमास ले चलूँ
यह उल्लास भरा उत्सव-क्रम मधुवर्षी लघुतम जीवन का
किसी प्रहर को रँग से भऱ दे , उज्ज्वल ,निर्मल हास सुमन का
अपने सँग अपनी माटी का नेह भरा आभास ले चलूँ.
सौरभमय सुकुमार रँगों में संध्याओं से भोर काल तक
आंगन की श्री-शोभा संग रातों के झिलमिल-से उजास तक
थोड़ा़ यह आकाश ले चलूँ ,अति प्रिय यह वातास ले चलूँ .
चल रे हर सिंगार तुझे मैं साथ ले चलूँ.
चंदन कुंकुंम धारे तरु डालों पर जगतीं दीप शिखाएँ ,
संध्या के रेशमी पटों में शीतल सुरभित श्वास समाये
इस जीवन से माँग-जाँच कर थोड़ा-सा मधुमास ले चलूँ
यह उल्लास भरा उत्सव-क्रम मधुवर्षी लघुतम जीवन का
किसी प्रहर को रँग से भऱ दे , उज्ज्वल ,निर्मल हास सुमन का
अपने सँग अपनी माटी का नेह भरा आभास ले चलूँ.
सौरभमय सुकुमार रँगों में संध्याओं से भोर काल तक
आंगन की श्री-शोभा संग रातों के झिलमिल-से उजास तक
थोड़ा़ यह आकाश ले चलूँ ,अति प्रिय यह वातास ले चलूँ .
चल रे हर सिंगार ....
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यायावरी का आभास लिए ...
जवाब देंहटाएंये तो एक पथिक की चाह रहती है हमेशा जहां से जोले सके वो साथ जोड़ ले ... रिश्तों का आभास ... प्रेम का मधुमास ... गंतव्य न जाने कोई ... चलना ही जीवन ...
अति प्रिय उद्गार ।
जवाब देंहटाएंहर इंसान की चाहत होती हैं कि वह जहां से भी जितनी भी हो सके यादे समेटते हुए आगे बढ़े। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहरसिंगार का एक वृक्ष मेरी खिड़की के बाहर है..उसे आपकी रचना सुनाई..वह कुछ और खिल गया, कितने सुंदर शब्दों में आपने उसकी जीवन गाथा कह डाली है..
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंअपने संग अपनी माटी का नेह भरा आभास ले चलूँ...
लाजवाब....
सुन्दर भावनाओं से ओत -प्रोत ,हृदय की बात धीमे से कहती आपकी रचना हृदय को स्पर्श करती हुई। आभार ,"एकलव्य"
जवाब देंहटाएंहरसिंगार !!! सौंदर्य, सुरभि और सादगी का संगम !
जवाब देंहटाएंऐसी ही है आपकी यह रचना भी ! हरसिंगार के फूलों से नाजुक भाव मन को छू गए ।
बेहतरीन लेख ... तारीफ-ए-काबिल ... Share करने के लिए धन्यवाद। :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
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