*
अंध तम का एक कण मै ,
तुम अपरिमित ज्योतिशाली ,
दीप के मैं धूम्र का कण ,
तुम दिवा के अंशुमाली !
*
मै अकिंचन रेणुकण हूँ ,
तुम अचल हिमचल निवासी !
मृत्युमय ये प्राण मेरे ,
ओ प्रलय के भ्रू-विलासी !
*
वन्दना निष्फल न जाये ,
देव यह आशीष देना ,
स्वर न हारे विश्व-तम से,
वे अनल के गीत देना !
*
- प्रतिभा .
अंध तम का एक कण मै ,
तुम अपरिमित ज्योतिशाली ,
दीप के मैं धूम्र का कण ,
तुम दिवा के अंशुमाली !
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मै अकिंचन रेणुकण हूँ ,
तुम अचल हिमचल निवासी !
मृत्युमय ये प्राण मेरे ,
ओ प्रलय के भ्रू-विलासी !
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वन्दना निष्फल न जाये ,
देव यह आशीष देना ,
स्वर न हारे विश्व-तम से,
वे अनल के गीत देना !
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- प्रतिभा .
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com