मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

वन्दना -

*
अंध तम का एक कण मै ,
तुम अपरिमित ज्योतिशाली ,
दीप के मैं धूम्र का कण ,
तुम दिवा के अंशुमाली !
*
मै अकिंचन रेणुकण हूँ ,
तुम अचल हिमचल निवासी !
मृत्युमय ये प्राण मेरे ,
ओ प्रलय के भ्रू-विलासी !
*
वन्दना निष्फल न जाये ,
देव यह आशीष देना ,
स्वर न हारे विश्व-तम से,
वे अनल के गीत देना !
*
- प्रतिभा .

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
    बहुत सुन्दर रचना । आभार

    ढेर सारी शुभकामनायें.

    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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