मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

मेरी मंगल कामनाएँ -

*
दूर-दूर तक जाएँ ,
मेरी मंगल कामनाएँ!
 कोई जाने , न जाने -
तरल तरंगों सी प्रतिध्वनि ,
सब अपनो में जगाएँ !

मौसमी हवाओं सँग मेरे सँदेसे 
शुभ ऊर्जा जगाते ,
आनन्द-उछाह भरें, 
मन में उजास जगा,
 दूर करें मलिन छायाएँ!

सदिच्छा के सूक्ष्म बीज 
नेह-गंधमय फसल उगाते ,
हर बरस  
चतुर्दिक् बिखर जाएँ,
बिखरते जाएँ !
  ‍‍*
- प्रतिभा सक्सेना.

रविवार, 1 दिसंबर 2019

मुझे नींद से डर लगता है.

बिलकुल नही सो पाती ,
यों ही बिलखते ,
कितने दिन हो गए !

 झपकी आते ही 
चारों ओर  वही भयावह घिर आता है -
नींद के अँधेरे में अटकी मैं,
पिशााचों का घेरा  .  

बस में खड़ी बेबस  झोंके खाती देह , 
 आगे पीछे,इधऱ से उधर से ,उँगलियाँ कोंचते 
ज़हर भरी फुफकार छोड़ते बार-बार .
सिमटती देह पर .  
अँगुलियाँ नहीं, लपलपाते साँप हैं ये ,
 देह से लटके, नर के प्रतीक.

आँखों में गिजगिजी तृष्णा लिये 
चीथते हैं अंग-अंग.
चीख निकलती नहीं,जीभ काठ, 
हाथ-पाँव सुन्न 
दिमाग़ शून्य.
चारों ओर वही सब ,
कहीं छुटकारा नहीं.

देह नुच-नुच कर चीथड़ा , 
हर साँस ज्यों तीर की चुभन .
  वीभत्स , घोर यंत्रणा ,
 उफ़्फ़ ,कहाँ जाऊँ ?
कैसे पार पाऊँ? 

अरे, कोई काट फेंको 
इन ज़हरीले साँपों को .
डसते-दाघते रहेंगे , 
नारी देह हो बस 
बचपन ,जवानी ,बुढ़ापा 
कोई अंतर नहीं पड़ता इन्हें.

घबरा कर आँखें खोल देती हूँ.
 समय वहीं थम गया है .
 नहीं, नहीं सो सकती,
मुझे नींद से डर लगता है.
*