मंगलवार, 3 मार्च 2015

हारा नहीं है ..

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रथ के टूटे पहिये से 
 कब तक लड़ोगे वसुषेण?
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कवच-कुंडल हीन लड़ रहा है वह.
हार नहीं मानेगा ! 
मृत-पुत्र हित मातृत्व  जाग उठा कुन्ती का
विक्षत  देह गोद में भर ली .
जीवन भर  तरसा था  जिसके लिए मन, 
 बोधहीन तन को नहीं ग्रहण !
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वह नहीं है अब !
होता तो कहता -
 नहीं चाहिये तुम्हारी  करुणा,
 व्यर्थ पड़ी रहेगी .
 लौटा ले जाओ ,
 बाँट देना उन सब को !
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अब यहाँ  नहीं है ,
पर वह मरा नहीं है .
 ऐसे पुरुष कभी नहीं मरते !
वह हारा नहीं ,
अन्याय का मारा है -
थक कर रणभूमि में सो गया है!
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