गुरुवार, 20 अगस्त 2020

जयति-जय माँ,भारती -

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शारदा,शंकर-सहोदरि ,सनातनि,स्वायम्भुवी,

सकल कला विलासिनी , मङ्गल सतत सञ्चारती.


ज्ञानदा,प्रज्ञा ,सरस्वति , सुमति, वीणा-धारिणी

नादयुत ,सौन्दर्यमयि ,शुचि वर्ण-वर्ण विहारिणी.


कलित,कालातीत,,किल्विष-नाशिनी,कल-हासिनी

भास्वरा, भव्या,भवन्ती ,भाविनी भवतारिणी


शुभ्र,परम निरंजना,पावन करणि,शुभ संस्कृता

अमित श्री,शोभामयी हे देवि, नमन, शरण प्रदा,


धवल कमलासीन,ध्यानातीत धन्य,धुरन्धरा

शब्दमयि,सुस्मित,स्वरा सौम्या सतत श्वेताम्बरा.


जननि,शुभ संस्कार दो ,दृढ़मति, सतत,कर्मण्य हों

राष्ट्र के प्रहरी बने  जीवन हमारा धन्य हो,

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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

ओ ,बाँके-बिहारी !

 ओ ,बाँके-बिहारी !

[तुम्हारी जैसी ही नटखट,मोहक, निराली विधा, नचारी में तुम्हारी महिमा गा रही हूँ ,इसकी बाँकी मुद्रा तुम्हारे त्रिभंगी रूप से खूब मेल खाएगी. अर्पित करती हूँ ,तुम्हारे श्री-चरणों में यह नचारी-]

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दुनिया के देव सब देवत हैं माँगन पे ,

और तुम अनोखे ,खुदै मँगिता बनि जात हो !

अपने सबै धरम-करम हमका समर्पि देओ ,

गीता में गाय कहत, नेकु ना लजात हो !

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वाह ,वासुदेव ,सब लै के जो भाजि गये,

कहाँ तुम्हे खोजि के वसूल करि पायेंगे !

एक तो उइसेई हमार नाहीं कुच्छौ बस ,

तुम्हरी सुनै तो बिल्कुलै ही लुट जायेंगे! 

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अरे ओ नटवर ,अब कितै रूप धारिहो तुम ,

कैसी मति दीन्हीं महाभारत रचाय दियो !

जीवन और मिर्त्यु जइस धारा के किनारे खड़े,

आपु तो रहे थिर ,सबै का बहाय दियो !

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तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही ,

हम तो पकरि लीन्हों तुम छूटि कितै जाओगे !

लागत हो भोरे ,तोरी माया को जवाब नहीं,

नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे !

एक बेर हँसि के निहारो जो हमेऊ तनि ,

हम तो बिन पूछे बिन मोल बिकि जायेंगे ! 

काहे से बात को घुमाय अरुझाय रहे ,

तू जो पुकारे पाँ पयादे दौरि आयेंगे !

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- प्रतिभा.


शनिवार, 8 अगस्त 2020

शिलान्यास के शुभ अवसर पर -

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 प्रभु, श्रीराम पधारो!

इस साकेतपुरी में, मन में ,रम्य चरित विस्तारो!

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बीता वह दुष्काल सत्य की जीत हुई,

नया भोर दे,तिमिर निशा अब बीत गई, 

विष-व्यालों के संहारक तुम गरुड़ध्वजी,

मातृभूमि के पाश काटने, धनुर्भुजी ,

 भानु-अंश, तम हरने को पग धारो !  

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युग-युग के दुष्पाप शमित हो, रहे शुभम् 

सुकृति-सुमति से पूरित हो तन-मन जीवन 

कुलांगार कर क्षार ,भाल   चंदन धर दो 

राष्ट्र-पुरुष का माथ तिलक से मंडित हो ,

मनुज लोक में पुण्य-श्लोक संचारो!

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सहस बरस बीते  अँधियाते, टकराते

रहे सशंकित ,पग-पग पर  धक्के खाते,

 इस भू से कलंक चिह्नों को निर्वारो,

परित्राण दो,क्षिति-तल के संकट टारो,

परम वीर ,हे महिमावान पधारो .

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दुर्मद-दुर्मति का निष्कासन संभव हो 

मिटा दैन्य ,सामर्थ्य नवोर्जाएँ  भर दो ,

भूमा का वरदान ,विश्व में शान्ति रहे 

बाधाएँ हट जायँ न कोई भ्रान्ति रहे,

करुणामय , निज जन के काज सँवारो !

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कर्मों में रत जीवन ,जब निस्पृह  जीता ,

शीश वहीं पर अखिल विश्व का नत होता -

सिद्ध किया तुमने निज को दृष्टान्त बना ,

दिव्य कर दिया पञ्चभूतमय तन अपना.

आ ,साक्षात् विराजो,  निज लीला धारो!

 अब, श्री राम पधारो !

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- प्रतिभा.