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प्रभु, श्रीराम पधारो!
इस साकेतपुरी में, मन में ,रम्य चरित विस्तारो!
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बीता वह दुष्काल सत्य की जीत हुई,
नया भोर दे,तिमिर निशा अब बीत गई,
विष-व्यालों के संहारक तुम गरुड़ध्वजी,
मातृभूमि के पाश काटने, धनुर्भुजी ,
भानु-अंश, तम हरने को पग धारो !
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युग-युग के दुष्पाप शमित हो, रहे शुभम्
सुकृति-सुमति से पूरित हो तन-मन जीवन
कुलांगार कर क्षार ,भाल चंदन धर दो
राष्ट्र-पुरुष का माथ तिलक से मंडित हो ,
मनुज लोक में पुण्य-श्लोक संचारो!
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सहस बरस बीते अँधियाते, टकराते
रहे सशंकित ,पग-पग पर धक्के खाते,
इस भू से कलंक चिह्नों को निर्वारो,
परित्राण दो,क्षिति-तल के संकट टारो,
परम वीर ,हे महिमावान पधारो .
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दुर्मद-दुर्मति का निष्कासन संभव हो
मिटा दैन्य ,सामर्थ्य नवोर्जाएँ भर दो ,
भूमा का वरदान ,विश्व में शान्ति रहे
बाधाएँ हट जायँ न कोई भ्रान्ति रहे,
करुणामय , निज जन के काज सँवारो !
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कर्मों में रत जीवन ,जब निस्पृह जीता ,
शीश वहीं पर अखिल विश्व का नत होता -
सिद्ध किया तुमने निज को दृष्टान्त बना ,
दिव्य कर दिया पञ्चभूतमय तन अपना.
आ ,साक्षात् विराजो, निज लीला धारो!
अब, श्री राम पधारो !
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- प्रतिभा.