गुरुवार, 3 सितंबर 2020

हम चिर ऋणी ..

 *

प्रिय धरित्री,
इस तुम्हारी गोद का आभार  ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके .
तुमको कृतज्ञ प्रणाम !
*
ओ, चारो दिशाओँ ,
द्वार सारे खोल कर रक्खे तुम्हीं ने .
यात्रा में क्या पता
किस ठौर जा पाएँ  ठिकाना.
शीष पर छाये खुले आकाश ,
उजियाला लुटाते ,
धन्यता लो !
*
पञ्चभूतों ,
समतुलित रह,
साध कर धारण किया ,
तुमको नमस्ते !
रात-दिन निशिकर-दिवाकर
विहर-विहर निहारते ,
तेजस्विता ,ऊर्जा मनस् सञ्चारते ,
नत-शीश वन्दन !
*
हे दिवङ्गत पूवर्जों ,
हम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से  क्रमित-
 विकसित एक परिणति -
 पा सके  हर बीज में
अमरत्व की सम्भावना ,
अन्तर्निहित  निर्-अन्त चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !!!
*
- प्रतिभा.