शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

विश्व-मंगल हेतु उतरो धरा पर, नव वर्ष !

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 विश्व-मंगल हेतु उतरो धरा पर, नव वर्ष !

इस अधीरा मही को आश्वस्ति से भर दो, 

चर-अचर को  सुमति मंत्रित प्रीतिमय स्वर दो.

कूट-कलुष मिटे मनुजता को मिले उत्कर्ष .

उतरो धरा पर, नव वर्ष !

श्वेत पंखों से झरें सुख-शान्ति के मधु स्वन,

सुकृति -शील सु-भाव से मण्डित रहे जन-मन,

नवल संवत्सर पधारो, सहित सुस्नेह सहर्ष!  

उतरो धरा पर, नव वर्ष !

दग्ध मानव-हृदय को दो ,आस्था के स्वर ,

विखण्डन सारे सहज परिपूर्णता से भर.

कर्ममय जीवन बने, संकल्प सुदृढ़-समर्थ!

उतरो धरा पर, नव वर्ष !

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सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

चन्दन क फूल -

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चँदन केर बिरवा मइया तोरे अँगना
कइस होई चँदन क फूल !
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कनिया रहिल माई बाबा से कहलीं ,
चलो, चलो मइया के दुआर !
केतिक बरस बीति गइले निहारे बिन
दरसन न भइले एक बार !
हार बनाइल मइया तोहे सिंगारिल ,
चुनि-चुनि सुबरन फूल !
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जइहौ हो बिटिया, बन के सुहागिनि ,
ऐतो न खरच हमार ,
आपुनोई घर होइल आपुन मन केर
होइल सबै तेवहार !
बियाहै गइल , परबस भइ गइली ,
रे माई तू जनि भूल !
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ना मोर पाइ धरिल एतन बल ,
ना हम भइले पाँखी !
कइस आइल एतन दूरी हो
कइस जुड़ाइल आँखी !
कोस-कोस छाइल गमक महमही ,
पाएल न चँदन क फूल !
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आपुनपो लै लीन्हेल गिरस्थी,
अब मन कइस सबूरी !
चँदन फूल धरि चरन परस की -
जनि रह आस अधूरी !
विरवा चँदन ,गाछ बन गइला
मइया अरज कबूल !
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