स्वीकार करो अभिनन्दन.
इस नये वर्ष में जागें नई विभाएँ ,
आकाश उजेला प्रमुदित रहें दिशाएँ ,
सरिताएं निर्मल बहें ,सुदृढ़ गिरिमाला ,
समवेत स्वरों में गूँजें नई ऋचाएँ
आनन्द-स्वरों से भरे प्रकृति का प्रांगण.
ये शाप-ताप उत्पात शमित होंगे ही ,
दृढ़ इच्छा शक्ति जाग जायेगी जिस क्षण.
पर इसके लिये सचेत,संतुलित,संयत
सुस्थिर हो ऊर्जा-सिक्त मनुजता का मन .
कितना पथ पार, जुड़े जिस संवेदन से ,
ओ सहयात्री, स्वीकार करो अभिनन्दन.
- प्रतिभा सक्सेना