गुरुवार, 27 अगस्त 2015

रिश्ते .


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जीवन भर रिश्ते ही तो जिये हैं !

इसी गोरखधंधे में घूमते ,
किससे ,कैसे ,कहाँ ,क्यों ,
सोचते- समझते ,
भूल गई
 निकलने का रास्ता किधर है .
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 उत्सुकता भर  कभी
 झाँक लिया बाहर -
कहीं-कहीं वाली खिड़कियों से .
रहने-बसने को यही कुठरियाँ -
कुछ इधर ,कुछ उधर !
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स्त्री है ,
उच्छृंखल न हो जाए .
धरे रहो जुआ संबंधों का !
निभाती रहे
तरह-तरह के  रिश्तोंवाली ड्यूटी.
रहेगी व्यस्त-लस्त ,
और कुछ सोचे बिना
बिता देगी जीवन.
*
'तुम हो माता  ,तुम बहन'
ज़ोरदार  गुन-गौरव गान,
प्रशंसा का अवदान ,
बस ,अनुकूल रहे तक !
अन्यथा गा दो
अपना 'तिरिया-चरित्तर पुराण' !
*
स्त्री - एक साधन !
 जरूरतें  तुम्हारी ,तुम्हारा मन
निभायेगी हर तरह
जाएगी कहाँ,
है कहीं ठौर रहने को ?


*
सावधान !
 छूट मत दो इतनी कि
अपने लिए जीने का  ,
मुक्त धारा सी
अबाध बहने का ,
शौक  पाल ले;
 व्यक्ति के रूप में कहीं
 स्वयं को  न पहचान ले !
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