आज फिर एक डायन ,
बाँसों से खदेड़-खदेड़ यातनायें दे ,
मौत के घाट उतार दी गई ।
इकट्ठे हुये थे लोग
यंत्रणाओं से तड़पती
नारी देह से उत्तेजित आनन्द पाने !
खा गई पति को ,
राँड है !
जादू-टोना कर चाट जाती बच्चों को ,
नज़र लगा कर ,चौपट कर दे जिसे चाहे ,
काली जीभ के कुबोल इसी के !
अकेली नारी !
बेबस ,असहाय !
कौन सुने उसकी ?
कहीं, कोई नहीं !
कोंच रहे हैं अंग-प्रत्यंग,
जितनी दारुण यातना ,
उतनी ऊँची किलकारियाँ !
ख़ून से लथपथ,
मर्मान्तक पीड़ा से
ऐंठता शरीर ठेल-ठेल ,
ठहाके लगाते लोग !
उन्मादग्रस्त भीड़ और
अकेली औरत !
बदहवास भागती है !
जायेगी कहाँ !
कहाँ जायगी, डायन ?
दर्दीली चीखों से रोमांचित-उत्त्तेजित
पत्थर फेंक-फेंक हुमस रहे लोग !
प्राणान्तक यंत्रणायें देते
असह्य सुख में
किलकारियाँ मारते लोग !
कौन सी नई बात !
सदियों से हर बरस
यही लीला देखने
इकट्ठा होते हैं -बड़े चाव से लोग !
वही पुरानी कथा -
आती है एक नारी,
स्वयं -प्रार्थिता ,
नारीत्व की सार्थकता हेतु ,
पुरुष की कामना लिये !
और शुरू हो जाता है तमाशा !
प्रर्थिता को एक दूसरे के पास फेर रहे
कंदुक सा बार-बार !
(पुरुष कहाँ अकेला ,
सब साथ होते हैं उसके !)
हो गई विमूढ़ , हास्य-पात्र ,
स्वयं-प्रार्थिता !
ऊपर से तिरस्कार की मनोव्यथा !
लोग रस विभोर !
उठ रहा है रोर !
क्रोध -औ'विरोध,
कटु वचनों के कशाघात,
और आत्म-श्रेष्ठता-ग्रस्त पौरुष का वार.
अंग-भंग कर संपन्न महत्-कार्य ,
मनुजता तार-तार!
समवेत अट्टहास !
गूँजते जयकार !
मुख विवर्ण-विकृत ,
लिखी पीड़ा अपार,
ऐंठता देहाकार !
ठहाके लगाते लोग !
रक्त-धारायें बहाता तन ,
घोर चीत्कार करती ,
भागती है वह,
अति आनन्द से हुलसते
नाच उठते हैं लोग !
सदियों से,साल-दर साल
यही मनोरंजन होता आया है.,
उत्सव यही देखने
अब भी तो आते हैं ,
वीभत्स आनन्द के प्यासे लोग!
सच बस यही रह गये हैं। सहमत।
जवाब देंहटाएं😥😢
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंनिःशब्द
गजब की टिप्पणीयुक्त, व्यंग्यात्मक रचना....
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
निशब्द करता मार्मिक शब्द चित्र ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-10-2020) को "मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ मीनाजी.
जवाब देंहटाएंदिल को छूती मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंअंतस को कचोटती निशब्द करती अभिव्यक्ति आदरणीय दी ।
जवाब देंहटाएंसादर
मर्मस्पर्शी !
जवाब देंहटाएंसच कुंठित सोच का अंत नहीं शिक्षित भी कितने अनपढ़ों जैसा व्यवहार करते हैं एक तरफ युग राकेट में उड़ान भर रहा है,दूसरी और वही अंधविश्वास और वर्जनाएं।
जवाब देंहटाएंअद्भुत! मर्मस्पर्शी लेख।
बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंBahut hi Sundar laga.. Thanks..
जवाब देंहटाएंदिवाली पर निबंध Diwali Essay in Hindi
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अकेली नारी !
जवाब देंहटाएंबेबस ,असहाय !
कौन सुने उसकी ?
कहीं, कोई नहीं !,,,,,,दिल को स्पर्श करती हुई सच को आईना दिखाती हुई बेहतरीन रचना ।आदरणीया प्रणाम,
मुख विवर्ण -विकृत ,
जवाब देंहटाएंलिखी पीड़ा अपार
ऐंठता देहाकार !
ठहाके लगाते लोग !..स्त्री संघर्ष को दर्शाती सटीक रचना..।
प्रभावशाली लेखन - - दीपावली की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंमन मोहक व्यंगात्मक रचना |बहुत बहुत सराहनीय |
जवाब देंहटाएंस्त्री जीवन संषर्षों की कहानी है
जवाब देंहटाएंbhut hi achhi post likhi hai
जवाब देंहटाएंbadi hi sunder post hai, hum is post ko apne doston ke saath bhi jarur share krenge, thanks, Free me Download krein: Mahadev Photo
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