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शत-शत वन्दन प्रभु हे,चित्रगुप्त त्राता,
विधि के मानस-पुत्र, कर्मगति निर्णायक,
अवधपुरी में प्रकट धर्महरि विख्याता!
कर्म-विपाक सृष्टि का निर्भर प्रभु, तुम पर
काल-पृष्ठ पर अंकित करते हस्ताक्षर ,,
रूप-स्वरूप,विजय,यश मति का सम्वर्तन,
सुर-नर मुनि कर रहे तुम्हारा अभिनन्दन !
शुभ संस्कार प्रदान करो,हर लो जड़ता!.
राम पधारे स्वयम् धर्महरि के मन्दिर ,
क्षमा-माँगने गुरु वशिष्ठ के सँग सादर ,
देव, कृतार्थ करो हम पर हो दृष्टि कृपा,
न्याय-व्यवस्था धरो, क्षमा दो हे मतिधर!
नमन तुम्हें शत कोटि नमन हे ,प्रभु त्राता!
द्युतिमय श्यामल देह दिव्यता से दीपित
तत्पर द्वादश पुत्र मातृद्वय पोषित नित
कुल-भूषण हों देव तुम्हारी संततियाँ ,
तिलक मनुजता के बन पावें शुभ गतियाँ
मसिधर-असिधर प्रभुवर तुम कर्ता-धर्ता
प्रभु,आशीष तुम्हारा हम पर सतत रहे ,.
विद्या विनय नीतिमय जीवन राह रहे
कभी न हो दूषित कुतर्क रचना मन में ,
सहज-सरल श्रद्धामय मति हो जन-मन में.
सन्मति ,शुभगति दो प्रभु, तुम ही सम्वर्ता!
भाईदूज के अवसर पर चित्रगुप्त देव की सुंदर वंदना, भारत की कायस्थ जाति परंपरा का स्रोत हैं इनकी संततियाँ।
जवाब देंहटाएंवाह | शुभकामनाएं दीप पर्व की |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुंदर वंदना 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंवाह वाह यह तो याद रखने लायक स्तुति है भगवान चित्रगुप्त की. बहुत खूब आदरणीया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रार्थना
जवाब देंहटाएंजय श्री चित्रगुप्त भगवान
चित्रगुप्त जी की ऐसी आरती प्रथम बार कहीं पढ़ने को मिली है। अद्भुत रचना। अद्वितीय !
जवाब देंहटाएंवाह वाह
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