तुम अपनी अंतर्व्यथा कहो!
*
जब वाष्प कंठ तक भर आये,
वाणी जब साथ न दे पाये,
छाये विषाद कोहरा बनकर , तब छलक नयन से सजल बहो !
*
शब्दों में अर्थ न समा सके,
सारे सुख जिस क्षण वृथा लगें,
मन गुमसुम अपने में डूबे , वह घन-भावन अन्यथा न हो !
*
श्वासों की तपन विकल कर दे ,
सब जोग-जतन निष्फल कर दे ,
रुकना पड़ जाए अनायास, पर मौन-अधूरी कथा कहो !
*
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जब वाष्प कंठ तक भर आये,
वाणी जब साथ न दे पाये,
छाये विषाद कोहरा बनकर , तब छलक नयन से सजल बहो !
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शब्दों में अर्थ न समा सके,
सारे सुख जिस क्षण वृथा लगें,
मन गुमसुम अपने में डूबे , वह घन-भावन अन्यथा न हो !
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श्वासों की तपन विकल कर दे ,
सब जोग-जतन निष्फल कर दे ,
रुकना पड़ जाए अनायास, पर मौन-अधूरी कथा कहो !
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अचक्स्ह्छी रचना है ! भावप्रधान सम्बोधन |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंवह मौन अधूरी कथा कहो ...
जवाब देंहटाएंअनुपम ... हर छंद पे वाह वाह और लाजवाब ही निकलता है ...
बहुत ही सुन्दर ...
भावपूर्ण और गीतिमय रचना..
जवाब देंहटाएंभाव प्रवण गीत।
जवाब देंहटाएंक्या बात है माँ!! आज कुछ भी नहीं रहा कहने को! जितनी सरलता से आपने कहा है कहने को उसके बाद कुछ कहने को रह ही नहीं जाता!! सिम्प्ली मेस्मेराइज़िंग!!
जवाब देंहटाएंएक सहज-सरल जिंदगी में डूबती -उतराती कहानी जैसी।
जवाब देंहटाएंहम खुशकिस्मत हैं कि आपकी रचनाएं पढ़ रहे हैं।
इस छोटे से भावपूर्ण गीत में अतिशय आत्मीयता की अभिव्यक्ति और प्रतीति मन पर छा गई है । इसी पर कुछ भी कहने में असमर्थ हूँ । अन्तर्मन में इसको अनुंभव ही किया जा सकता है । तुम कहो .......
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंवाह ..... मन को विश्वास दिलाते भाव .....
जवाब देंहटाएंआह.. सुकून सा आ जाता है आपकी रचनाएं पढकर .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ...ये कथा कहो..अहो ..अहो..अहो...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और गहरे भावों से सजी अभिव्यक्ति । सचमुच जब अनुभूतियाँ घनीभूत हो जाएं तब अभिव्यक्ति अनिवार्य है ।
जवाब देंहटाएंसही कहा...इसे बांधना ठीक नहीं .....कवि मन को तृप्त करती हुई रचना.
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