गुरुवार, 20 मार्च 2014

सत-बहिनी

{  कत्थई-भूरे रंग की पीली चोंचवाली चिड़ियाँ होती हैं जिनका का पूरा झुंड पेड़ों पर या,क्यारियों में आँगन में उतर कर चहक-चहक कर खूब शोर मचाता है .
उनके विषय में एक  कथा प्रचलित है - सात बहनें थी,और सबसे छोटा एक भाई। सातों बहनें एक ही गाँव में ब्याही थीं। आगे कथा इस प्रकार चलती है -}

अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत-बहिनी !
बिरछन पे चिक-चिक ,किरैयन में किच-किच
चोंचें नचाइ पियरी पियरी !चिरैयाँ सत-बहिनी ..

एकहि गाँव बियाहिल सातों बहिनी,मइके अकेल छोट भइया ,
'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा ' कहि के पठाय दिहिल मइया !

'माई पठाइल रे भइया ', मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !'

सात बहिन घर आइत-जाइत ,मुख सुखला ,थक भइला ,
साँझ परिल तो माँगि बिदा ,भइया आपुन घर गइला !
अगिल भोर पनघट पर हँसि-हँसि बतियइली सतबहिनी !

'हमका दिहिन भैया सतरँग लँहगा' ,'हम पाये पियरी चुनरिया' ,
'सेंदुर-बिछिया हमका मिलिगा' ,'हम बाहँन भर चुरियाँ' !
'भोजन पानी कौने कीन्हेल',अब बूझैं सतबहिनी !
'का पकवान खिलावा री जिजिया' , 'मीठ दही तू दिहली' ,
'री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली !'
तू-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सतबहिनी !

'भूखा -पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली ,
दधि-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली ',
उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ-रोइ सतबहिनी !
' तुम ना खबाएल जेठी ?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं
एकल हमार भइया, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं !

साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सतबहिनी !
*

20 टिप्‍पणियां:

  1. अबके बरस भेज भैया को बाबुल... और भैया बेचारे का ये हाल... बहुत प्यारी कथा... उतनी ही प्यारी बोली...!!
    माँ, मन में बस गया ये गीत!!

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    1. सलिल भाई के उत्तर में ही खो गया हूँ !!
      आपको प्रणाम !!

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    2. रचना को दिल से पकड़ा हो जैसे सीधा ... प्रणाम है सलिल भाई ...

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  2. पहली बार सुनी यह कथा. कितना खजाना मिला है हमें विरासत में, जिसे हम खोये दे रहे हैं.

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  3. मीठी बोली...सुरीली गाथा..

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  4. यादों की पोटली से निकली एक सुंदर कथा.

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/03/2014 को "दर्द की बस्ती":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1559 पर.

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  6. चर्चा मे सम्मिलित करने हेतु ,हार्दिक आभार !

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  7. आदरणीय बहुत ही सुंदर बोली , व बोली के साथ कथा , पूरा माहौल बदल गया , धन्यवाद
    नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
    बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

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  8. शकुन्तला बहादुर23 मार्च 2014 को 6:47 pm बजे

    माधुर्यमयी मनोमुग्धकारी अभिव्यक्ति हेतु साधुवाद !!

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  9. ओ! सतबहिनी को ही गीत में गाया जाता है और पूजा भी की जाती है . अब तक इसकी कहानी को जाना नहीं था अब अपने बुजुर्गों से पूछती हूँ.

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  10. पहली बार सुनी पर मन को छू गयी ... भाव और शब्दों का मिश्रण जैसे रस घोल रहा है ... झूमती हुई रचना ...

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  11. माता जी प्रणाम आपने कथा को जीवंत कर दिया
    मेरी दादी के छः बेटे किन्तु उन्हें भी यथेष्ट सम्मान मृत्यु के समय नहीं मिल पाया

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  12. मार्मिक कथा । क्या कोई बहिन इतनी लापरवाह होगी ।

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    1. लापरवाह ?वे इतने उछाह में भर गई कि सब भूल गईँ ,फिर एक दूसरे का आसरा भी . अब हमेशा रोती-पछताती लड़ती रहेंगी : हैं तो मूर्ख चिरैयाँ ही न !
      बेचारी !

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  13. काफी दिलचस्प पर मार्मिक। … जहाँ तक मुझे याद आ रहा है कि एक बार सतना मैहर में मैंने कुछ इसी तरह का गीत सुना था। ..

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