शनिवार, 18 अप्रैल 2020

अरी गिलहरी -

अरी भाग मत, रुक जा पल भर कर ले हमसे बात, गिलहरी . 
बना पूँछ को कुर्सी अपनी ,पीपल छैंया बैठ दुपहरी !

इतनी झब्बेदार पूंछ के साथ,बड़ी तू प्यारी लगती .
 बैठी हो तो भोली-भाली बड़े सलीकेवाली लगती
कैसे आहट पा जाती है  बड़े चाव से आते जब हम  
सरसर चढ़ जाती ऊँची शाखों, पर दौड़ लगाती हरदम,
हाथों में ले बड़े ठाठ से खाती दाना और फलहरी.

धारीदार कोट फ़रवाला किससे नपवा कर सिलवाया ,
ये दमदार ,निराला कपड़ा कौन जुलाहे से बुनवाया ?
सजा दिया है बड़ी डिज़ाइनदार और झबरीली दुम से
हमको नाम बता दो जिसने यों पहनाया नेह  जतन से, 
सुन्दर भूरे श्यामल तन पर कितनी प्यारी  रेख रुपहरी .

साफ़ और सुथरा रख  हरदम, झाड़-पोंछ कैसे कर पाती,
चिट्चिट् चिट्चिट् करती करती झट नौ-दो-ग्यारह हो जाती.
चना-चबेना ,कंद-मूल तुझको मिल जाता है सब कुछ तो 
 डाली की अधपकी दशहरी कुतर-कुतर कर गिरा रही क्यों?
बिना संतुलन खोये दुम को खूब नचाती  देह छरहरी.

लंका तक का पुल-रचने में तूने भी तो किया बहुत श्रम ,
तुझे सराहा स्वयं राम ने हाथ पीठ पर फेरा जिस क्षण 
अंगुली की वह छुअन खींचती गई वहाँ रेखाएँ चमचम.
कितना शोभित तब से ही हो गया तुम्हारा नन्हा सा तन
प्यारी सी ,न्यारी सी गिल्लो, जग जाती तू बड़ी सुबह री .
*

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह ! गिलहरी रानी के तो भाग खुल गए, इतना सुंदर बखान इस नन्ही सी जान का..

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  3. बहुत सुन्दर ...
    गिलहरी ... कितने कठिन से विषय पर बहुत सहजता से आपकी लेखनी चलती है ...
    प्रणाम है आपकी लेखनी को ...

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  4. वाह क्या कहने ,बेहतरीन रचना ,नमन आपको

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