बुधवार, 12 नवंबर 2014

नचारी - गौरा की बिदाई .

*
तोरा दुलहा जगत से निराला उमा, मैना कहिलीं,
कुल ना कुटुम्व, मैया बाबा, हम अब लौं चुप रहिलीं !
कोहबर्# से निकसे न दुलहा ,बरस कुल बीत गइला !
सिगरी बरात टिक रहिली  बियाही जब से गौरा.
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रीत व्योहार न जाने बसन तन ना पहिरे ,
अद्भुत उमा सारे लच्छन, तू कइस पतियानी रे !
भूत औ परेत बराती, सब हि का अचरज होइला,
भोजन पचास मन चाबैं तओ भूखेइ रहिला !

*
रीत गइला पूरा खजाना कहाँ से खरचें बहिना ,
दिन-गिन  बरस बितावा परिल कब लौं  सहना ?
पारवती सुनि सकुची, संभु से बोलिल बा -
 केतिक दिवस बीत गइले , बिदा ना करबाइल का ?

*
सारी जमात टिक गइली, सरम कुछू लागत ना ,
 अद्भुत बरात रे जमाई, हँसत बहिनी,- जीजा !
हँसे संभु, चलु गौरा  बिदा लै आवहु ना ,
सिगरी बरात, भाँग, डमरू समेट अब, जाइत बा !

*
गौरा चली ससुरारै, माई ते लपिटानी रे
केले के पातन लपेटी बिदा कर दीनी रे !
फूल-पात ओढ़िल भवानी ,लपेटे शिव बाघंबर ,
अद्भुत - अनूपम जोड़ी, चढ़े चलि बसहा पर !
*

(# कोहबर - नव-दंपति का क्रीड़ागृह )

11 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत....जो सारे जगत से निराला है उसकी हर अदा भी तो निराली होगी...

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  2. अनुपम...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले

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  3. अध्बुध नज़ारा सा बाँध दिया आपने आँखों के सामने ... गौर की बिदाई आलोकिक शब्दों में बाँध दी आपने ...

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  4. kayi baar padhi..aankhon me aansu bhar aaye..jaane kyun?? nishchit bhi nahin kar pa rahi hoon ki kya hua jo mann bheeg utha.
    nachari padh kar mann humesha prasann hota hai.
    bahut bahut aabhaar. visheshkar antim pad hetu..mann ko chhu gaya antim drishya. :'')

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  5. माँ! पता नहीं क्यों इस गीत को पढते हुये सोच रहा हूँ कि इसकी धुन कैसी होगी! छन्द तो बस मन में बस जाते हैं, जब गाया जाता होगा तो भाव सीधे दिल में उतर जाते होंगे सुरों के माध्यम से!
    मेरे लिये तो बस एक ही शब्द है - मेस्मेराइज़िंग!!

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  6. शिव-भवानी का ब्याह ..., लोकगीत की शैली में कितना मनोहर लग रहा है !

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  7. आपकी ह्रदय से आभारी क्योकि आपकी वजह से ही यह अवसर मेरे हाथ मे आया ,नही तो आपकी रचना को पढ़ने का सुखद आनन्द कैसै मिलता .

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  8. शकुन्तला बहादुर5 जनवरी 2015 को 7:17 pm बजे

    अद्भुत चित्रण ! शिव और गौरा के विवाह के माध्यम से विवाह का विचित्र
    किन्तु मनोमुग्धकारी दृश्य आँखों को तृप्ति कर गया । लोकगीत की धुन में
    इसकी सरसता और भी बढ़ जाएगी । मन को छू गया ये गीत ।

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