सोमवार, 2 सितंबर 2013

जैसी हूँ...

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जैसी हूँ  मैं ,उसी रूप में प्रभु, स्वीकार करो !
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जो स्वभाव है भाव वही लो, गलत लग रहा हो कि सही हो ,
मनो-वासना देखो  मेरी त्रुटियाँ उर  न धरो.
भूल-भटक लौटी हूँ  द्वारे ,इन फंदों से कौन निवारे 
बीत गया जो रीत गया ,अब तुम परिताप हरो !
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तुमने ही तो रचा मुझे यों ,धुन पर नाचे नाच, नटी ज्यों,
जैसा बना ,कर सकी जितना, अंगीकार करो .
कहाँ रहा मेरा कोई वश, बस इतना मुझसे पाया सध ,
दोषों का परिहार करो प्रभु ,अवगुण क्षमा करो.
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पता न ये भी था करना क्या ,कैसे जीवन को भरना था 
चलती बेला में अपना लो, यह उपकार करो !
जो कुछ हुआ तुम्हीं ने प्रेरा ,कभी हुआ  क्या चाहा मेरा ,
 अंतिम परिणति पर आ पहुँची ,तुम्हीं विचार करो .
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 अब तो जैसी हूँ वैसी  हूँ ,वृथा सोचना  क्यों ऐसी हूँ 
किसी भाँति निभ गई जगत में ,अब अनुताप हरो .
सीमित मति विचारणा मेरी, दुर्बलताएँ रहीं घनेरी  ,
लेकिन अब  दायित्व तुम्हारा,सिर पर हाथ धरो !
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केवल यत्न देखना  मेरे, निष्फलता के दंश नहीं रे 
क्या खोया क्या पाया अब तक, तुम्हीं हिसाब करो , 
गहन कृष्णमयता में सारे , कलुष समा लो मोहन, मेरे
मेरे अंतर्यामी, मन के विषम विषाद हरो  !
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18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ! एक समर्पित हृदय के प्रेरक उद्गार !

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  2. भक्ति और समर्पण भाव से ओतप्रोत बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति प्रतिभा जी !
    latest post नसीहत

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  3. पूर्णतः समर्पित हो के जीने की प्रेरणा है ये गीत ... जो है जैसा है उसे स्वीकारना ही होगा उस प्रभू को ... कैसे नहीं स्वीकारेगा ... ये बस उसका ही दायित्व है ...
    ऐसे निर्मल वंदन हों तो बेबस हैं प्रभू भी ...

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  4. अब तो जैसी हूँ वैसी हूँ ,वृथा सोचना क्यों ऐसी हूँ
    किसी भाँति निभ गई जगत में ,अब अनुताप हरो .
    सीमित मति विचारणा मेरी, दुर्बलताएँ रहीं घनेरी ,
    तुम्हीं फैसला करनेवाले सिर पर हाथ धरो !…।

    प्रभु अब तो उद्धार करो

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  5. जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....

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  6. बहुत ही सुंदर समर्पण भाव को अभिव्यक्त करती रचना.

    रामराम.

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  7. ये सहजता ही प्रभु को प्यारा है
    उसने जैसा चाहा हमें संवारा है
    जिसने भी सहर्ष इसे स्वीकारा है
    वो उनका अधिक दुलारा है..

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  8. सब कुछ ईश्वर पर छोड़ सम्पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित कर निश्चिंत मन हो जाता है .... बहुत सुंदर भाव ।

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  9. भावपूर्ण समर्पण...बहुत सुन्दर

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  10. samarpan me hi shanti hai ........moksh hai ...jb bhi ye bhav prakat hota hai to samjho eeshwar door nahi .....

    rachana bilkul sangrhneey lagi ......sadar aabhar saxena ji .

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  11. ऐसा सुन्दर समर्पण गीत पढ़ मैं भी नत हुआ!

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  12. antas to jaanta hi hai is satya ko..kitnu samay kuch aisa hai..k apne hriday kee baat kam sunayi deti hai...aur jab bol kar keh kar hum apne hi dil ki baat padhte hain to mann aanand me bhaav vibhor ho jata hai...kuch aisa hi hua mere saath bhi...:)
    kitni sehajta se rom rom me aapki rachna ne samarpan kee gehan bhaavna ghol di..!
    bahut aabhaar pratibha jee is bhavnamayi rachna hetu.

    (bhagwanji padhenge to kahenge ki ,'' bhala ye bhi koi kehne kee baat hai'' !! :) :D..)

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