बुधवार, 13 मार्च 2013

एक लोरी : मेरे बचपन की.

*
आ जा री निंदिया.
आ जा री निंदिया आ जा ,मुनिया/मुन्ना को सुला जा !

मुन्ना है शैतान हमारा .
रूठ बितता है दिन सारा .
हाट-बाट औ'अली-गली में नींद करे चट फेरी ,
शाम को आवे लाल सुलावे उड़ जा बड़ी सवेरी !
*
आ जा निंदिया आ जा तेरी मुनिया जोहे बाट ,
सोने के हैं पाए जिसके रूपे की है खाट
मखमल का है लाल बिछौना तकिया झालरदार ,
सवा लाख हैं मोती जिसमें लटकें लाल हज़ार !
*
आ जा री निंदिया आ जा!
नींद कहे  मैं आती हूँ सँग में सपने लाती हूँ .
निंदिया आवे निंदिया जाय ,निंदिया बैठी घी-गुड़ खाय,
*
(वर्षा के मौसम में जुड़ जाता -)
पानी बरसे झम-झम कर, बिजली चमके चम-चम कर
,भोर का जागा मुन्ना ,मेरी गोद में सोवे बन-बन कर .
निरख-निरख छवि तन-मन वारूँ लोर सुनाऊं चुन-चुन कर .

आजा री निंदिया.
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18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और सरस लोरी.

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  2. काश कोई गाकर सुनाये इस लोरी को..

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  3. मन में भीतर तक हलचल मचा गई ...
    सुन्दर लोरी ...

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  4. इतनी सुंदर लोड़ी सुनकर निंदिया रानी तो आएगी ही ..... :)
    बहुत सुन्दर लोड़ी ...
    सादर !

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  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. सुचना ****सूचना **** सुचना

    सभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ


    (माफ़ी चाहता हूँ समय की किल्लत की वजह से आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दे सकता।)

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  7. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .बहुत सुन्दर बिम्ब लिए है लोरी भाव और शब्द सौन्दर्य देखते ही बनता है .

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  8. पलकों के बगल में नींद आकर बैठ गयी..

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  9. बहुत सुन्दर ...गुनगुनाने का मन हो रहा है ...!!:))

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